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________________ क्षुद्ररोगाधिकारः। दित हो, यह अक्षिपाकात्यय नामक अक्षय ( नाशरहित ) व त्रिंदोषोत्पन्न रोग है। इस को दोषोंके विशेष को जानने वाला वैध छोड देवें अर्थात् यह रोग सन्निपातज होनेसे असाध्य होता है ॥ २०६१ अजक लक्षण. वराटपृष्ठप्रतिमोऽतितोदनः । सरक्तवर्णो रुधिरोपमद्रवः ॥ . स कृष्णदेशं प्रविदार्य वर्द्धते । स चीजकारख्योऽक्षिभयंकरो गदः ॥२०७॥ भावार्थ:-कमल बीजके पीठ के समान आकारवाला, अत्यंत . तोदन (सुई चुभे ने जैसी पीडा ) युक्त लाल, ऐसा जो फूल कृष्णमण्डल की दारण कर के उत्पन्न होकर वृद्धिंगत होता है, जिससे रक्त के समान लाल पाता गिरता है, यह अजक या भाजक [ अजकजात ] नानक भयंकर नेत्र रोग जानना चाहिये ॥२०७॥ कृष्णगतरोगोंके उपसंहार. इमे च चत्वार उदीरिता गदाः । स्वदोषलक्षा निजकृष्ममण्डलें। अतःपरं दृष्टिगतामयान् ब्रुवे-। विशेषनामाकृतिलक्षणेक्षितान् ॥२०८॥ भावार्थ:-इस काली पुतली में होनेवाले, चार प्रकार के रोग जो कि दोषभेदानुसार उत्पन्न लक्षण से संयुक्त है उन को वर्णन कर चुके हैं। इसके बाद दृष्टि गत रोगों को उन के नाम आकृति लक्षण आदि सम्पूर्ण विषयोंके साथ वर्णन करेंगे ॥२०८॥ हष्टि लक्षण. स्वकर्मणामोपशमप्रदेशजां । मसूरमात्रामतिशीतसाधनी ॥ प्रयत्नरक्ष्यामतिशीघनाशिनीम् । वदंति दृष्टिं विदिताखिलांगदाः॥२०९।। भावार्थ:-नेत्रेद्रियावरण कर्मके क्षयोपशम जिस प्रदेशमें होता है, उस प्रदेशमें उत्पन्न, मसूर के दालके समान जिसका आकार गोल है और शीतलताप्रिय वा अनुकूल होता है, जिससे रूपको देख सकते हैं ऐसे अवयव विशेष की सम्पूर्ण नेत्र रोगों को जानने वाले दृष्टि कहते हैं । यह दृष्टि शीघ्र नाशस्त्रभावी है । अत एष अति प्रयत्न से रक्षण करने योग्य है ।। २०९॥ रष्टिगतरोगवर्णनप्रतिज्ञा. गाश्रयान् दोपकृतामयान् ब्रो। द्विषट्प्रकारान् पटलमभेदनान् ।। यथाक्रमानामविशेषलक्षण-। प्रधानसाध्यादिविचारसक्रियाम् ॥२१०॥ १ सभाजकाख्यो इति पाठांतरं । २ लक्षण । .. . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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