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Annary
क्षुद्ररोगाधिकारः ।
( ३५१) भावार्थ:-कठिन, यो, कोयेको दूषण करनेवाले खुजलीयुक्त अन्य छोटी २ फुन्सीयोंके समूहसे व्याप्त, जो पिडका ( फुन्सी ) कोये में होता है उसे वर्म शर्करा कहते हैं । यह कफवातके प्रकोपसे उत्पान होता है ॥ १८१ ॥
अविर्मका लक्षण, तथा च उरिकबीजसीन्नभाः । खरांकुराः श्लक्ष्णतराः विवेदनाः ॥ भवंति वमन्यवलोकनक्षयाः। सदा तदाऽधिकवत्मदेहिनाम् ॥ १८२॥
भावार्थ:--मनुष्यके कोयमें ककडीके बीजके समान आकारवाली कठिन चिकनी, वेदनारहित और आंखको नाश करनेवाली जो फुसियां होती है, उसे, अर्शवम कहते हैं ॥ १८२ ॥
शुष्का व अंजननामिकालक्षण, खरांकुरो दीर्घतरोऽतिदारुणा । विशुष्कदुर्नामगदः स्ववमनि ॥ सदाहताम्रा पिटकातिकोमला । विवेदना सांजननामिका भवेत् ॥१८३॥
भावार्थ:--कोयेमें खरदरा, दीर्घ लम्बा अति भयंकर अकुंर उत्पन्न होता है उसे शुष्कार्श रोग कहते हैं । कोयेमे दाह युक्त, ताम्रवर्णवाली अत्यंत कोमल, वंदना रहित जो फुन्सी होती है उसे अंजनामिका कहते हैं ॥ १८३ ।।
बहलवम लक्षण. कफोल्वणाभिः पिटकाभिरंचितं । संवर्णयुक्ताभि समाभि संततः ॥ समंततः स्यात् बहलाख्यवमता । स्वयं गुरुत्वान्न ददाति वाक्षितुम् ।।
भावार्थ:--कोया, चारों तरफसे कफोद्रेकसे उत्पन्न, समान व सवर्ण फुन्सी योसे युक्त होता है तो इसे, बहलवर्म रोग कहते हैं । यह स्वयं गुरु रहनेसे आंखोंको देखने न दता ॥ १८४ ॥
वर्मबंध लक्षण. सशोफकण्डूयुततुरध्वंदना । समेतवाक्षिनिरीक्षणावहात् ।। युतस्तदा वर्त्मगतावबन्धको । नरो न सम्यक्सकलानिरीक्षते ॥ १८५ ॥
भावार्थ:- कोया, खुजली व अल्पवेदनाबाली सूजन से युक्त होने के कारण आंखें देखने में असमर्थ होती हैं । इस रोगसे पीडित मनुष्य सम्पूर्ण रूपोंको अच्छी तरहसे नहीं देख पाता है । इसे वार्मावबंध अथवा वर्मबंध कहते हैं । १८५ ॥
१ समाभिरत्यंतसवर्णसंचयात् इति पादांतरं,
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