________________
क्षुद्ररोगाधिकारः।
भावार्थ:--आंखोंमें कुछ लिप्तसा मालूम होना और अति शैत्य, भारीपना व शोफ होना, तीन खुजली चलना, गरम पदार्थो में अधिक लालसा होना, एवं आंखो से चिकना स्राव होना ये लक्षण कफज अभियंद रोग में पाये जाते हैं ॥ १४७ ॥
___ कफजाभिष्यद की चिकित्सा. तमप्यभीक्ष्णं शिरसो विरंचनैः । सिराविमोक्षरतिरूक्षतापनः ॥ फलत्रिकत्र्यूषणसादकद्रयैः । प्रलेपयत्सोष्णगवांरपेषितैः ॥ १४८ ॥
भावार्थः-उस कफज अभिष्पंदको भी शिरोविरेचन, सिरा मोक्षण व अतिरूक्ष पदार्थोसे तापनके द्वारा उपचार करना चाहिये । एवं त्रिफला [ सोंठ मिरच पीपल ] इनको अद्रकके रस व उष्ण गोमूत्र के साथ अच्छी तरह पीसकर आंखोंमे लेपन करना चाहिये ॥ १४८ ॥
कफभिष्यंदमें आश्चोतन व सेक. ससैंधवैस्सा णतरैर्मुहुर्मुहु-। भवेत्सदाश्चोतनमेव शोभनम् ॥ पुनर्नवांघ्रिप्रभवैः ससैंधवै । रसैनिषिचेत्कफरुद्ध लोचनम् ।। १४९ ।।
भावार्थ:-बार २ उपतर सेंधा लोणसे उसपर सेक देना चाहिये एवं सोंटके रसको सेंधा लोणके साथ मिलाकर उसको उस कफगतं आंख में संचन करना चाहिये ।। १४९॥ .
. कफाभिष्यंदमें गण्ड्रप व कवल धारण.. सुपिष्टसत्सर्पोष्णवारिभिः । सदैव गण्डूषविधिविधीयताम् । सशिगुमूलाईककुष्टसैंधवैः । प्रयोजयेत्सत्कबलान्यनंतरम् ॥ १५० ।
भावार्थ:--सरसोंको अन्छीतरह पीसकर गरम पानीसे मिलाकर उससे गण्डष प्रयोग करें । एवं तदनंतर सेजनका जड, अद्रक, सेंधानमक इन औषधियोंसे कत्रल ग्रहण करावे ॥ १५ ॥
कफाभिष्यंद में पुटपाक. पुटप्रपाकैराततक्षिणरूक्षः । कपाथसक्षारगणेगवांबभिः॥ निशाद्वयत्र्यूषणकुष्टसर्पप । प्रपिष्टककैललितैः सुगालितः ॥ १५.१ ॥
भावार्थ:--अतितीक्ष्ण व रूक्ष औषधियोंको कपाय व क्षार द्रव्यों के साथ मिलाकर गोमूत्र के साथ पांसें, एवं दोनों हलदी, त्र्यूषण, कूट, सरसों इनका कल्क बनाकर उ में मिला फिर गालनकर पुटपाक सिद्ध होनेपर कमाभियंदमें प्रयोग करें १५१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org