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क्षुद्ररोगाधिकारः।
(३२९)
भावार्थ:-तोदन भेदनादिसे युक्त, कठिन, उन्नत, तीनों दोषों के लक्षणों से संयुक्त ( त्रिदोषज ) गले को रोकनेवाला, बीके सदृश जो अकुंर उत्पन्न होता है इसे शतघ्नी कहते हैं । इसकी शतघ्नी ( कांटे से युक्त शस्त्रविशेष) के समान आकृति होनेसे इसका शतघ्नी नाम सार्थक है ॥ ८९ ॥
शिलातु (गिलायु ) लक्षण. · गलोद्भवं ग्रंथिमिहाल्पवेदनं । बलासरक्तात्मकमूष्मसंयुतम् ॥ विलग्नसिक्थोपममाशु साधय-। द्विदार्य शस्त्रेण शिलातुसज्ञिकम् ॥१०॥
भावार्थ:-कफरक्तके विकारसे उष्णतासे युक्त, अल्पवेदनासहित शिलातु नामक गलग्रंथि होती है । जिसके होनेसे, (भोजन करते समय) गलेमें अन्नका ग्रास अटकतासा मालुम पडता है । इसको शीघ्र विदारण करके चिकित्सा करनी चाहिये ।। ९० ॥
गलविद्रधि व ग़लौघलक्षण. स विद्रधिर्विद्रधिरेव सर्वजो । गले नृणां प्राणहरस्तथापरम् ॥ फफास्त्रगुत्थं श्वय) निरोधतो । गले गलौघं ज्वरदाहसंयुतम् ॥ ९१ ॥
भावार्थ:-मनुष्योंके कंठमें पूर्वोक्त विद्रधि के समान लक्षणोंसे युक्त सन्निपातज विधि होता है । वह मनुष्योंका प्राण अपहरण करनेवाला है। और दूसरा कफ रक्तसे उत्पन्न घर व दाहसे युक्त गल में महान शोथ उत्पन्न होता है। यह गलावरोध ( अन्नपानादिक व वायुसंचार को रोकता है) करता है इसलिये यह गलौघ काहलाता
स्वरस्नलक्षण.
बलाससंरुद्धाशिरामु मारुत-। प्रवृत्यभावाच्छसितश्रमान्वितं ॥ हतस्वरः शुष्कगलो विलग्नव- । द्भवेत्स्वरघ्नामयपीडितो नरः ॥१२॥
भावार्थ:-वायुका मार्ग कफस लिप्त होने से, वायुकी प्रवृत्ति नहीं होती है । इसलिये श्वास व परिश्रमसे युक्त होकर रोगीका स्वर बैठ जाता है, गला सूख जाता है, गलेमें आहार अटकतासा मालूम होता है । इस बातजन्य रोगको स्वरघ्न कहते हैं ॥९२॥
मांस रोग [ मांसतान लक्षण गले तनोति श्वयधु क्रमात् क्रमात् । त्रिदोषलिंगोच्छ्यवेदनाकुलम् ॥ समांसरोगाख्यगलामयं नृणां । विनाशकृत्तीनविषारगोपमम् ॥ ९३ ।।
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