________________
(२९२)
कल्याणकारक
भावार्थ:-गुद, हृदय, यकृत् , नाभि, प्लीहा, बस्ति इन स्थानों में होकर जो विद्रधि पक गया हो वह असाध्य है। दूसरे अवयवमें होकर भी विषम रूपसे जो पैक गया हो व फूट गया हो वह भी असाध्य होता है । इसलिये उसे पहिले असाध्य कहकर फिर चिकित्सा करनी चाहिये ॥ २६ ॥
विद्रधिका असाध्य साध्य लक्षण। श्वसनकसनहिकारोचकाध्मानशूल- । ज्वरयुतपरितापाद्धंधनिष्पंदवातात ॥ उपरिनिसृतपूये विद्रधौ नैव जीवेत् ॥
भवति सुखकरोऽयं चाप्यधःसृष्टपूयः ॥ २७ ॥ भावार्थ:-वात के प्रकोपसे जिस विद्रधिमें श्वास, कास, हिचकी, अरोचकता अफराना, शूल, ज्वर, ताप उद्बधन (बंधाहुआ जैसा ) निश्चलता आदि विकार प्रकट
होते हैं और ऊपरकी ओर पूय (पीप ) निकलने लगता है, उसमें रोगी कभी नहीं जी • "सकता है। नीचे की ओर पूय जिसमें निकले वह विद्रधि साध्य है ॥२७॥
विद्रधि चिकित्सा। प्रथममखिलशोफे पूष्णवोपनाहः । प्रवर इति जिनेंद्रेः कर्मविद्भिः प्रणीतः ॥ प्रशमनमधिगच्छत्यामसंज्ञाविधिज्ञ-।
स्त्वरिततरविपकं स्याद्विपक्कामभेदम् ॥ २८ ॥ भावार्थ:---सबसे पहिले सर्व प्रकारके शोफो (विद्रधि) में उष्णवोक्त औषधियों का पुल्टिश बांधना उपयोगी है। ऐसा सर्व चिकित्सा कार्य को जाननेवाले श्री जिनेंद्र भगवानने कहा है। उससे आम शोफ [ जो नहीं पका है] जल्दी उपशमन को प्राप्त होता है अर्थात् बैठ जाता है। जो बैठने योग्य नहीं है तो शीघ्र ही पक जाता है । शोफ दो प्रकारका है। एक आमशोफ दूसरा पक्क शोक ॥२८॥
____ आमविदग्धविपक्क लक्षण. कठिनतरविशेषः स्यादिहामाख्यशोफो । ज्वरबहुपरितापोमाधिकः स्याद्विदग्धः ।। विगतविषमदुःखःस्याद्विवर्णो विपक्व- । स्तमिह निशितशस्त्रच्छेदनैः शोधयत्तम् ॥ २९ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org