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क्षुद्ररोगाधिकारः।
(२७१) अथ भगंदररोगाधिकारः ।
भगंदरवर्णनप्रतिज्ञा । निगद्य संक्षेपत एवमश्मरी । भगंदरस्य प्रतिपाद्यते क्रिया। स्वलक्षणैः साध्यविचारणायुतैः । सरिष्टवगैरपि तच्चिकित्सितैः ॥४४॥
भावार्थ:-----इस प्रकार संक्षेपसे अश्मरी रोगको प्रतिपादनकर अब भगंदर रोगका वर्णन उसकी चिकित्सा, लक्षण साध्यासाध्य विचार, मृत्युचिन्ह आदि के साथ २ करेंगे इस प्रकार आचार्यश्री प्रतिज्ञा करते हैं ॥ ४४ ॥
भगंदर का भेद । क्रमान्मरुत्पित्तकफैरुदीरितैः । समस्तदोषैरपि शल्यघाततः ॥ भवंति पंचैव भगंदेराणि त- । द्विषाग्निमृत्युप्रतिपानि तान्यलं ॥ ४५ ॥
भावार्थ:--भगंदर रोग क्रमसे वातज, पित्तज, कफज, वातपित्तकफज ( सन्निपातज ) शल्यघातज ( कांटे के आधातसे उत्पन्न ) इस प्रकारसे पांच प्रकारका होता है । यह रोग विष, अग्नि, मृत्युके समान भयंकर है ॥ ४५ ॥
शतयोनक व उष्ट्रगललक्षण | सतोदभेदप्रचुरातिवेदनं । मरुत्प्रकोपाच्छतयोनकं भवेत् ।। सतीवदाहज्वरमुग्रंपत्तिकं । भगंदरं चोष्ट्रगलोषमांकुरम् ।। ४६ ॥
भावार्थ:---बातोद्रेक से उत्पन्न भगंदर, तोद, भेद, आदि अत्यंत वेदना से युक्त होता है । इसका नाम शतयोनक है । पित्तमकोपसे उत्पन्न भगंदर में तीन दाह [ जलन ] व ज्वर होता है। यह ऊंट के गले के समान होता है । इसलिये इसे उष्ट्रगल कहते हैं ॥ १६ ॥
परिस्रावि व कंबुकावर्तलक्षण । कफात्परित्रावि भगंदरं महत् । सकण्डुरं सुस्थिरमल्पदुर्घटम् ॥ उदीरितानेकविशेषवेदनम् । मुकंदुकावर्तमशेषदोषजम् ॥ ४७॥
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१ गुदा के बाहर और पास में अर्थात् गुदा से दो अंगुल के फासले में, अत्यंत वेदना उत्पन्न करनेवाली पिडका [ फोडा ] उत्पन्न होकर, वही फूट जाता है, इसे भगंदर रोग कहते है ।
२ शतयोनक का अर्थ चालनी है । इस भगंदर में चालनी के समान अनेक छिद्र होते हैं। इसलिये शतयोनक नाम सार्थक है।
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