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( २५८)
कल्याणकारके
भावार्थ:-एवं अर्श रोगीको उपर्युक्त औषधियोंके कल्क बनाकर दहीके तोड आम्ल तक्रके साथ पीने को देना चाहिये । अथवा क्षार जलके साथ पानेको देना चाहिये ॥ १२६ ॥
भल्लातक कल्प। साधुवेश्मनि विशुद्धतर्नु भ- । ल्लातकः कथितचारुकपायम् ॥ आज्यलिप्तवदनोष्ठगलं तम् । पाय येत्प्रतिदिनं क्रमवदी ॥ १२७ ॥
भावार्थ:--उस अर्श रोगीके शरीरको वमन, विरेचन आदि से शुद्ध करके एवं उसे प्रशस्त घरमें रखकर भिलावेके कपायको प्रतिदिन पिलाना चाहिये। कषाय पिलानेके पहिले मुख, ओष्ठ, कंठ आदि स्थानों में घीका लेपन वुशल वैद्य करावें ॥ १२७ ॥
प्रातरौषधमिदं परिपीतं । जीर्णतामुपगतं सुविचार्य ॥ सर्पिषोदनमतः पयसा सं- । भोजयेदलवणाम्लकमध्यम् ॥ १२८ ॥
भावार्थः--उपर्युक्त औषधिको प्रात:काल के समय पिलाकर जब वह जीर्ण होजाय तब उसे नमक व ग्वटाई से रहित एवं दूध नासे युक्त भातका भोजन कराना चाहिये ॥ १२८ ॥
भल्लातकास्थिरसायन. पक्कशुष्कपरिशुद्धबृहद्भ- । लातकाननुविदार्य चतुर्य-॥ कैकमंशमभिवयं यथास्थ्य- । कैकमेव परिवर्धयितव्यम् ।। १२९ ॥ अस्थिपंचकगणः प्रतिपूर्ण । पंचपंचभिरतः परिवृद्धिम् ॥ यावदस्थिशतमत्रसुपूर्ण । हासयेदपि च पंच च पंच ॥ १३० ॥ यावदेकमवशिष्टमतः पू- । वक्तिमार्गपीरवृथ्यवतौरः ।। सवितैर्दशसहस्रबीजे- । निर्जरो भवति निर्गतरांगः ॥ १३१
भावार्थ:--अग्छ!तरह पके हुए बटे २ भिलावों को शुद्ध कर के सुखाना चाहिये । फिर उन को फोडकर ( उनके ) वीज निकाल लयं । पहिले दिन इस बाँज ( गुठली ) को चौथाई, दूसरे दिन आधा, व तीसरे दिन पौन हिस्सा भक्षण करें । चौथे दिन एक बीज, पांचवें दिन २ बीन, छट दिन ३ बीज, मातवें दिन ४
१ भिलावेकी शुद्धि-८ मिलाव। एक बारीक अंदर रखकर, साधारण कुचलना चाहिये । पश्चात् उसको निकालकर, उसपर इंटका पूर्ण डालें और एक दिन तक रख । दूसरे दिन पानीसे धोकर टुकडा करके चौगुने पानी ( बर्तन के मुंहको न ढकते हुए ) पकावें । फिर बराबर दूध में पकावें । बादमें पोकर सुखा लेवें । इभ विधीसे भिलावे की अच्छीतरह से शुद्धि होती है ।। ..
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