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________________ (२४४) कल्याणकारके मृतगर्भाहरणविधान। पूर्वमेव तदनंतरमास- । नागतं ह्यपहरेयुरपत्यं ॥ मुद्रिकानिहितशस्त्रगुखना- । श्वाहरेन्मृतशिशु प्रविदार्य ॥ ५९ ॥ भावार्थ:--पहिलेसे ही अथवा औषधि आदिके प्रयोग के बाद निकट आये हुए बच्चेको हाथसे बाहर निकालना चाहिये ! यदि वह बच्चा मरगया हो तो मुद्रिका शस्त्रसे विदारण करके निकालना चाहिये ।। १९ ॥ स्थूलगर्भाहरणविधान । स्थौल्यदोषपरिलग्नमपीह ! प्राहरेत्प्रवलपिच्छिलतैला- ॥ लिप्तहस्तशिशुयोनिमुखान्त- । मार्गगर्भमतियत्नपरस्सन् ॥ ६० ॥ भावार्थ:- यदि वह बच्चा कुछ मोटा हो अत एव योनिके अंतर्मार्गमें रुका हुआ हो तो उस समय लिबलिबे औषधियों को अपने हाथ, बच्चा व योनिमें लगाकर बच्चे को बहुत सावधान होकर बाहर निकालना चाहिये । ६० ॥ गर्भको छेदनकर निकालना।। येन येन सकलावयवेन । सज्यते मृदुशरीरमपत्यम् ॥ तं. करण परिमृज्य विधिज्ञः । छेदनैरपहरेदतियत्नात् ॥ ६१ ॥ --.. भावार्थ:-मुंदुशरीरके धारक बच्चा जिस अवयवसे अटक जाता हो उन अंगों को हाथसे मलकर एवं छेदकर बहुत यानके साथ बच्चे को बाहर निकालना चाहिये ।।६१ सर्वमूढगर्भापहरण विधान | मूढगर्भगतिरत्र विचित्रा । तत्वविद्विविधमार्गीवकल्पः ॥ निर्हरेत्तदनुरूपविशेषै- । गर्भिणीमुपचरेदपि पश्चात् ॥ ६२ ॥ भावार्थ:-मूढगर्भकी गति अत्यंत विचित्रा हुआ करती है । इसलिये उनके सब प्रकार के भेदों को जानने वाला बुशल वैद्य अनेक प्रकारकी. उचित्त रीतियों से उसे बाहर निकालें । तदनंतर गर्भिणीका उपचार करें ॥ १२ ॥ प्रसूता का उपचार । योनितर्पणशरीरपरिषे- । कावगाहनविलेपननस्ये-- ॥ - • पूक्ततैलमनिलध्नमशेषं । योजयेदपि बलाविहितं च ॥.६३ ॥ १ यदि गर्भ जीवित होतो कभी छेदन नहीं करना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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