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कल्याणकारक
भावार्थ:-दूष्योदरीको असाध्य कहकर छोडना चाहिये । अथवा उस विष सेवन कराना चाहिये । उसके सेवनसे कदाचित् उसके रोगकी निवृत्ति होजायगी अथवा कदाचेत् सुख पूर्वक मरण भी होजायगा ॥१६५॥
यकृत्प्लीहोदर चिकित्सा । यकृत्प्लिहोद्धृतमहोदरे शिरां । स्वदक्षिणे वामकर च मध्यमे ॥ . यथाक्रमात्तां व्यधयेद्विमर्दयन् । प्लिहां करेणातिदधिप्रभोजिनम् ॥१६६॥
भावार्थ:---रोगीको खूब दही खिलाकर यकृददररोग में दाहिने हाथ के, प्लीहोदर में बांयें हाथ के मध्यप्रभाग स्थित शिगको, प्ली:। को, मर्दन करते हुए, व्यधकरना ( फम्त खोलना ) चाहिये ।। १६६ ॥
युधांशतक्षिणाम्बररोपमप्रभा । सुखोष्णगोक्षारविमिश्रितां पिबेत् ॥ यकृत्प्लिहाध्मातमहोदरी नर : । क्रमात्सुखं प्राप्नुमना मनोहरम् ॥१६७||
भावार्थ -. कपूर से मिश्रित सुग्रोण गायके दूव उसे पिलाना चाहिए। जिससे यकृत् , प्लिहा, आध्मान, महोदर आदि रोग दूर होते हैं ॥ १६७ ।।
यकृप्लिहानाशकयोग ! सौवर्चिकाहिंगुमहौषधान्विता । पलाशभस्मसृतमिश्रितां पिबेत् ॥ निहंति सक्षारगर्विपाचितं । समुद्रजातं लवणं प्लिहोदरम् ॥१६८ ॥
भावार्थ:----काला नमक, हींग, सोंठ इनको पलाशा भम्मके कषाय में मिलाकर पीना चाहिये | एवं क्षार वर्गके साथ समुद्रलवणको पकाकर पीयें तो प्लिहोदर रोग नाश होता है ॥ १६ ॥
पिप्पल्यादि चूर्ण । सपिप्पलाँसधवचित्रकान्वित । यवोद्भवं साधु विचूर्णित समम् ।।.. रसेन सौभांजनकस्य मिश्रित । लिहेद्यकृत्प्लीह्यदरोपशांतये ॥ १६९ ॥ .
भावार्थ:--पीपल, सैंधानमक, चित्रक व विक्षार को समांश चूर्ण करके उसे संजनके रस में मिलाकर रोज चाटे तो यकृत व प्लीहोदर की शांति होती है ॥१६९।।
षट्पलपि । सपिप्पली नागरहस्तिपिप्पली : शटीसमुद्राग्नियवोद्भवः शुभैः ॥ कषायकल्कैः पलषदकसंमित- । रिदं घृतं प्रस्थसमांशगोमयम् ॥१७॥
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