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________________ कल्याणकारके तस्मिन्गुड स्यार्धतुलां निधाय । सारोदकस्य कुडबाष्टकमिश्रितं सत् ॥ सम्यक्पिधायास्य घटस्य वक्त्रं । संस्थापयेदधिकधान्ययवोरुकूपे ॥ १:२॥ एवं समस्तानमृतपयोगान् । संयोजयत्कथितमार्गत एव सर्वान् ॥ संस्कार एषोऽभिहितम्समस्तः । सर्वोषधादारघटे विधेयम् ॥ १३ ॥ उदृत्य तत्सप्तदिनाच पक्षात् । मासादतः प्रचुरगंधरसं सवीर्य । तद्भक्षयेदाग्नबलानुरूपम् । कुष्ठप्रमहोदरनाशहेतुम् ॥ ११४ ॥ भावार्थ:- जमालगोटेको अड, चित्रक, देवदारु, पूतीकरंज, निशोय, त्रिकदु, त्रिफला, पीपलामूल इनको प्रत्येकको कुडुब (१६ तोला ) प्रमाण लेकर उनका चूर्ण फरें और उसमें अर्थ भाग ( ८ तोला ) लोहेके चूण | भस्म ] को मिलावें, यह चूर्ण सैयार रखें। एक घीका घडा लेकर उसे अग्निमें जलावे, एवं जानुन, कथ, आम्र, तुलसी, मातुलंग इनके पत्तोंको उसमें पकाकर पुनः गंधोदक [ चंदन नेत्रवाला, खशआदि गंधदव्योंके कषाय ] से उसे अच्छीतरह धोना चाहिये। फिर शक्कर के पानीसे मिश्रित काली मिरच, पीपल के चूर्णको घडेके अंदर लेपन कर सुगंध पुष्पों द्वारा उसे सुगंधित करें । पश्चात्याहरसे अच्छीतरह उसे डोरोंसे बुनना चाहिये जिससे यह सुरक्षित रहे। इस प्रकार संस्कार किये गये घडेमे ऊपर तैयार किये हुए चूर्णको डाल देवे, उसमें अर्ध तुला ढाईसेर ' एवं आठ कुडुब प्रमाण खदिरका काढा मिलाकर उसके मुंहको अच्छी तरह चंदकर कोई धान्य कूप [धान व जौसे भरा हुआ गट्ठा ] मे गाडना चाहिये। इसी विधिसे सम्पूर्ण अमृततुल्य प्रयोगोंको तैयार करना चाहिये। तात्पर्य सम्पूर्ण अरिष्टोंको बनानेकी विधि यही है । उस औषधिके आधारभूत घटका संस्कार उपर्युक्त विधिसे ही करना चाहिये। . फिर उसको सात दिनमे या पंद्रह दिनमें या एक महिनेमे जब अच्छी तरह गंध, रस, वीर्य आदि गुण उसमें. व्यक्त हो जाय तब निकालकर रोगीके अग्निबलके अनुसार खिलाये जिससे कुष्ठरोग, उदर व प्रमेहरोग नष्ट होते हैं ॥ १०९ ॥ ११० ॥ १११ ॥ ११२ ॥ ११३ ॥ ११४ ॥ आरग्वधारुष्करमुष्कनिंघ ! रंभार्कतालतिलमंजरिकामुभस्म ॥ द्रोणं चतुद्रोणजीविपकं । रक्तं रसं सवति शुद्धपटाववद्धम् ॥ ११५ ॥ अत्र क्षिपेदाढकसप्रमाणं । शुद्धं गुडं त्रिकटुकं त्रिफलाविडंगम् ॥ प्रत्येकयेकं कुडपपयाण । चूर्ण लवंगलपलीबहुलाप्रगाढम् ॥ ११६ ॥... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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