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________________ महामयाधिकारः। ( १९७) औषधियोंसे पुष्ट, ध स्थूलको कषण ( पतला करनेवाले ) प्रयोगसे कृश, करना चाहिये ॥ २९॥ प्रमेहियोंके लिये पथ्यापथ्य सुरासवारिष्टपयोघृताम्लिका । अभूतमिष्टान्नदधीक्षुभक्षणम् । विवर्जयेन्मांसमपि अमेहबान । विरूक्षणाहारपरो नगं भवेत् ॥ ३० ॥ भावार्थ:---प्रमेही रोगी मद्य, आसवारिष्ट, दूध, घी, इमली, (अन्य ख पदार्थ, मिष्टान्न, दही, ईख, मांस आदि आहारको छोडकर कक्षाहार को लेने ॥ ३० ॥ प्रलेहीके बसन विरेचन । तिलातसीसपतलभावितं- स्वदेहमेहातुरमाशु वारयेन् । सनिंबतोयमदनोद्भवैः फलै-- विरेचयेच्चापि विरंचनौषधैः ॥ ३१ ॥ भावार्थ:-प्रमेही रोगी के शरीरको तिल, अलसी व सरसोंके तेलसे स्नेहिस ( स्नेहनक्रिया ) करके नीमका रस व मेनफल के कपाय से वमन कराना चाहिये । एवं विरेचन औषत्रियोंद्वारा विरेचन कराना चाहिये ।। २१ ॥ निरूहबस्ति प्रयोग। विरेचनानंतरमेव सं नरं। निरूहयेच्चापि निरूहणौषधैः । गवांबुयुक्तस्तिलतैलमिश्रिते -- स्ततो विशुद्धांगमर्माभिराचरेत् ॥ ३२॥ भावार्थ:--विरेचन के अनंतर गोमुत्र व तिलतलसे मिश्रित निरूहण औषधियोंके द्वारा निरूह बस्ति देनी चाहिये । उसके बाद उप्त शुद्ध अंगवालेको निम्न लिखित पढ़ाणसे उपचार करें ॥ ३२ ॥ ___ प्रमेहीकालय भोज्यपदार्थ । प्रियंगुकोहालकशालिपिष्टकैः । सकंगुगोधूमयवानभाजनैः । . कषायतिक्तैः कटुकैस्सहाढकी -- कलायमुरैरपि भोजयेद्भिषक् ॥ ३३ ॥ भावार्थः-प्रियगु | फुलप्रियंगु ] जंगली कोडव, शालिधानका आटा; कांगुनी धान, गेहूं, जो तथा कपायले, चरपरे कडुये पदार्थोके साथ एवं अरहर, मटर व मूग का उसे भोजन करना चाहिये ।। ३३ ॥ आमलकारिष्ट। निशां विचूण्यामलकांवुमिश्रितां । घटे निषिक्य प्रपिधाय संस्कृते ॥ जधायकूऐ विहितं यथावल लिहीत महान् कपतो. निषेत्रित्म् ॥ २१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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