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________________ (22) - १ मैसोर गवर्नमेंट लायब्ररीके ताडपत्रकी प्रतिकी प्रतिलिपि । प्रतिलिपि सुंदर है। जैसे बाह्यलिपि सुंदर है, उस प्रकार लेखन बिलकुल शुद्ध नहीं है । साथमें हिताहिताध्याय का प्रकरण तो लेखक के प्रमाद से बिलकुल ही रह गया है। २ यह प्रति ताडपत्र की कानडी लिपिकी है। स्व. पं. दोर्बली शास्त्री श्रवणबेलगोला के ग्रंथ-भांडार से प्राप्त होगई थी। गांधी नाथारंगजी जैनोन्नति फंड की कृपा से यह प्रति हमें मिली थी । ताडपत्र की प्रति होने पर भी बहुत शुद्ध नहीं कही जा सकती है । ३ मुंबई ऐ. प. सरस्वती भवन की प्रति है। जो कि उपर्युक्त नं. २ की ही प्रतिलिपि मालुम होती है । मूलप्रति में ही कहीं २ हस्तप्रमाद होगया है । उत्तर प्रति में तो पूछिये ही नहीं, लेखकजी पर प्रमाद-देवता की पूर्ण कृपा है । ४ रायचूर जिले के एक उपाध्याय ने लाकर हमें एक प्रति दी थी। जो कि कागद पर लिखी हुई होने पर भी प्राचीन कही जा सकती है । ग्रंथ प्रायः शुद्ध है । अनेक स्थलोंपर जो अडचनें उपस्थित होगई थी, उनकी इसी प्रति ने दूर किया । प्रति के अंतमें लेखक की प्रशस्ति भी है । उस में लिखा है कि ___“ स्वस्तिश्रीमत्सर्वज्ञसमयभूषण केशवचन्द्रत्रविद्यदेवशिष्यैालचंद्रभट्टारकदेवर्लिखितं कल्याणकारक" जैसे ग्रंथप्रामाण्य के लिए गुरुपरंपरा की आवश्यकता है उसी प्रकार लेखन प्रामाण्य को दिखलाने के लिए लेखक ने लेखन परंपरा का उल्लेख किया है। वह इस प्रकार है ___" पूर्वदल्लि लिखितव नोडिकोंडु बरदरु- अर्थात् बालचन्द्र भट्टारकने पूर्वलिखित ग्रंथको देखकर इस ग्रंथकी लिपि की । उन्होने अपने गुरुके गुणगौरवको उल्लेख करते हुए निम्न लिखित श्लोकको लिखा है । केचित्तर्कवितर्ककर्कशधियः केचिच्च शब्दागम-- क्षुण्णाः केचिदलं कृतिप्रवितथ-प्रज्ञान्विताः केवलं । केचित्सामयिकागमैकनिपुणाः शास्त्रेषु सर्वेष्वसौ । प्रौढः केशवचंद्रसूरिस्तुलः प्रोद्यनिविद्यानिधिः ॥ आगे लिखा है कि स्वस्तिश्री शालिवाहन शक वर्ष १३५१नेय सौम्यनाम संवत्सरद ज्येष्ठ शुद्ध २ गुरुवारदल्लु श्री बालचंद्र भट्टारकर बरद ग्रंथ । अदनोडि अवर शिष्यरु बरदुकोडरु. आ प्रति नोडि स्वस्तिश्री शक वर्ष १४७६ वर्तमान आनंदनाम संवत्सरद कार्तिक शुद्ध १५ शुक्रवारदल्लु श्रीमत्तुमटकर बस्तिय इंद्रवंशावय देचण्णन सुत वैद्य नेमण्ण पंडितनु मुन्नजर प्रति नोडि उद्धरिसिदरु, अदु प्रतिनोडि शकवर्ष १५७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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