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________________ कफरोगाधिकारः। (१८९) भावार्थ:-इस प्रकार, तीनों दोषों के प्रकोप के कारण, कुपित होनेपर प्रकट होनेवाले लक्षण, और उसके प्रशमन उपाय, आदि सर्व विषय थोडे ही श्लोकों द्वारा, अर्थात् संक्षेप से, निरूपण किया गया है। कठिनतासे जानने योग्य इन रोगों के स्वरूप भेद आदि को अच्छतिरह जानकर, वैद्यको उचित है कि, दोषोंके भेद, अनुभेद, व्यामिश्र भेद, आधिक्य अनाधिक्य झ्यादि अवस्थाओंपर ध्यान देते हुए उनके अनुरूप श्रेष्ठ औषधियों को युक्ति पूर्वक प्रयोगकर के रोगोंको उपशमन करें ॥ २३ ॥ लघुताप्रदर्शन. द्रव्याण्यतान्यचित्यान्यगणितरसवीर्यप्रपाकप्रभावा- । न्युक्तान्यन्यान्यनुक्तान्यधिकतरगुणान्यद्भुतान्यल्पशास्त्रे ॥ वक्तुं शक्नोति नान्यस्त्रिभुवनभवनाभ्यंतरानेकवस्तु-। ... ग्राहिज्ञानकचक्षुस्सकलविदपि प्रांमुह्यते मद्विधःकिम् ॥ २४ ॥ . . भावार्थ:--अभीतक जो औषधियों के वर्णन किये गये हैं वे अचिंत्य हैं, अगणित रस बीर्य विपाक प्रभावोंसे संयुक्त हैं। लेकिन अधिक व अद्भुत गुणयुक्त, और भी अनेक औषध मौजूद हैं जिनके वर्णन यहां नहीं किया है । क्यों कि अगणित शक्तिके धारक, असंख्यात अनंत द्रव्योंका कथन इस अल्पशास्त्र में कैसा किया जासकता है। इस तीनलोक के अंदर रहनेवाले अनेक वस्तुओंको जानने में जिन का ज्ञान समर्थ है, इसीलिये सर्वविद् है ऐसे वेद्यों के कथन में भी औषधद्रव्य अपूर्ण रहजाते हैं तो फिर मुझ सरीखों की क्या बात ? ॥२४॥ चिकित्सासूत्र । दोषान्विचार्य गुणदोषविशेषयुक्त्या । सद्भेषजान्यपि महामयलक्षणानि ॥ योग्यौषधैः प्रतिविधाय भिपग्विपश्चि-- द्रोगान् जयत्यखिलरोगबलममाथी ॥२५॥ भावार्थ:-- सम्पूर्ण रोगरूपी सैन्य को मारने में समर्थ विद्वान् वैद्य, दोषों के विषय में विचार करते हुए, अर्थात् किस दोषसे रोगकी उत्पत्ति हुई है, कोनसा प्रबल है अबल है आदि बातोंपर ध्यान देते हुए श्रेष्ठ भेषजोंके गुणदोषोंको युक्तिपूर्वक समझकर तथा महारोगोंके लक्षणों को भी जानकर योग्य औषधियोंद्वारा चिकित्सा करके रोगों को जीतता है अथवा जीतना चाहिये ॥ २५॥ आषधि का यथालाभ प्रयोग। सैरेतैः प्रोक्तसद्भेपर्वाप्यधैरधैर्वा यथालाभतो वा । योग्यैर्योगैः मल्यनीकैः प्रयोगैः रोगाश्शाम्यत्यद्वितीयैरमोथैः ॥ २६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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