________________
पित्तरोगाधिकारः।
(१७३)
कार्पासबीजसितसर्षपबहिबह-।
धूपो ग्रहज्वरपिशाचबिनाशहेतुः ॥७७॥ भावार्थ:--होंग, मिरच, अकौवा, पलाश, सर्पकी कचैली, उत्तम सोंठ, चाणपत्र कपासका बीज, सफेद सरसौ, मयूरके पंख इनसे धुप देनेस भूतप्रेतोंके उपद्रमसे उत्पन्न ग्रहज्वर का भी उपशम होता हैं ॥ ७७ ॥
स्नेह व रूक्षीस्थित ज्वरचिकित्सा। स्नेहोस्थितेष्वहिमपेयविलेप्यप । दृष्याद्धि रूक्षणविधिः कथितो ज्वरेषु ॥ स्नेहक्रियां तदनुरूपवरौषधाद्यां ।
संयोजयेदधिकरूक्षसमुद्भवेषु ॥ ७८ ॥ भावार्थ:-अधिक स्नेहन करनेसे उत्पन्न ज्वरमें गरम पेय, विलेपी, यूषादि धातुओंके रक्षण करने वाली विधिका प्रयोग करना चाहिय, अति रूक्षण करनेसे उत्पन्न घरोंमें स्नेह क्रिया व तद्योग्य औषधियों से चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ७८ ।।
स्नेह व रूथिन ज्वरोंमें वमनादि प्रयोग स्नेहोद्भवेषु वमनं च विरंचने स्या-। द्रक्षज्वरेषु विदर्धात स बस्तिकार्यम् ॥ क्षीरं घृतं गुडयुतं सह पिप्पलीभः ।
पेय पुराणतररूक्षमहाज्वरेषु ॥ ७९ ॥ भावार्थ:-नेहज ज्वरमें वमन विरेचन देना चाहिये, और रूक्षजज्वरमें बस्तिकार्य करना चाहिये, पुराने रूक्षज महावरे गुड व पीपल इनसे युक्त दृध या घी को पीना चाहिये ।। ७९ ॥
ज्वर मुक्त लक्षण कांक्षां लघुक्षवथुमन्नरुचिं प्रसनं । सर्वेद्रियाणि समशीतशरीरभावम् ॥ कण्डूमलप्रकृतिमुज्ज्वलितोदराग्निं ।
वीक्ष्यातुरं ज्वरविमुक्तमिति व्यवस्येत् ॥ ८० ॥ भावार्थ:-खानेकी इच्छा होना, शरीरका हल्का होजाना, अन्नमें रुचि होना, प्रसन्नचित्त होना, संपूर्ण इंद्रियोंकी अपने २ कार्य करनेमें समर्थता होना, शरीरमें समशीतोष्णता होना, खुजलाना, मल का विसर्जन ठीक २ होना, उदरालिका प्रज्वलित होना यह अविमुक्तका लक्षण है.८८ !
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org