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________________ कल्याणकारके चाहिये । पश्चात् प्रयुक्त औषधि के बाहर निकाल ने के लिये, रोगीको [ एक मुहूर्त पर्यंत ] उकरू बैठालना चाहिये ॥ ५६ ॥ सुनिरूढलक्षण। क्रमाद्वपुरीषदोषपरिशुद्धिमालाक्य तः ।। त्पुटत्रयमिहाचरेदपि चतुर्थपंचान्हिकम् ॥ यथा कफविनिगमो भवति वेदनानिग्रह- । स्तथैव समुपाचरेन च निरूहसंख्या मता ॥ ५७ ॥ भावार्थ:-उपरोक्त क्रमसे निरूहबस्ति प्रयोग करने के बाद सबसे पहिले प्रयुक्त द्रव पदार्थ पश्चात् यथाक्रमसे मल, वात, पित्त, कफ बाहर निकल आवे, एवं रोग की उपशांति हो तो जानना चाहिये कि निम्हबस्ति ठीक २ होगयी है। अर्थात् यह सुनिरूढका लक्षण है । यदि सुनिरूढताका लक्षण प्रकट न हो तो फिर चार पांच दिन तक क्रमशः तीन वास्तका प्रयोग करना चाहिये । लेकिन निरूहबस्ति के विषयमें यह कोई नियम नहीं है कि एक, दो, तीन या चार बस्ति प्रयोग करें। जब तक कफ बाहर नहीं आता है और रोग की उपशांति नहीं होती है, तब तक बराबर बस्ति देते जाना चाहिये ॥ ५७ ॥ निरूह के पश्चा द्विधेय विधि व अनुवासनबस्तिप्रयोग। ततश्च मुविशुद्धकोष्ठमुपधौतमुष्णोदकः । . स्वदोषशमनप्रयागलघुभाजनानतरम् ॥ यथोक्तमनुवासनं विधियुतं नियुज्याचरे- । . द्भिषग्जघनपादताडन मुमंचकोत्क्षेपणैः ।। ५८ ॥ भावार्थ:-उपर्युक्त प्रकारसे वस्तिकर्ममे कोप्टशुद्धि होनेके बाद गरम पानीसे स्नान करा कर तत्तदोषोंको शमन करनेवाले औषध योगोंसे सिद्ध किये गये, लघुभोजन कराना चाहिये । तदनंतर उसे विधिपूर्वक अनुवासन बस्ति देनी चाहिये। अनुवासन बस्तिगतद्रव्य शीव्र बाहर नहीं आये, इसके लिये रोगी चितसुलाकर जघन स्थान व पाद को ताडन करना चाहिये । तख्तको ऊंचा उठाना चाहिये ।। ५८ ॥ १ एक मुहूर्त ( दोघडी ) के अंदर निरूहनबस्ति पेट बाहर निकल न जावें तो रोगी की मृत्यु होने की सम्भावना है । कहा भी है । न आगतो परमः कालो मुहूर्ती मूल्य पर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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