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कल्याणकारके
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तो देह में संताप ( जलन ) पैदा करता है। इन तीन सांसर्गिक अवस्थाओ में भी तीन प्रकार से वातकी ही चिकित्सा करनी पडती हे ॥ ९ ॥
वातव्याधि के भेद । मुहुर्मुहुरिहाक्षिपत्यखिलदेहमाक्षेपकः । स संचलति चापतानक इति प्रतीतोऽनिलः । मुखार्धमखिलार्धमर्दितसुपक्षघातादपि ।
स्थितिभवति निश्चल विगतकमकार्यादिकम् ॥ १० ॥ : भावार्थ-संपूर्ण शरीर को बार २ कम्पन करनेवाला आक्षेप वात, * चावलयुक्त सुप्रसिद्ध अंपतानक, आधे मुखको वक्र करके निश्चल करनेवाला अर्दित, सारे, शरीर के अर्थ भागका निश्चेष्ट करनेवाला पक्षाघात, ये सब वातरोग के भेद हैं ॥ १० ॥
अपतानक रोगका लक्षण । करांगुलिगतोदरोरुहृदयाश्रितान् कंडरान् । क्षिपं क्षिपति मारुतस्स्वकशरीरमाक्षेपकान् ।। कर्फ वीत चोर्ध्वदृष्टितवभुग्नपाहनो।
नं चालयति सोऽन्नपानमपि कृच्छ्रतोऽप्यश्नुते ॥ ११॥ भावार्थ:-वह वायु हाथ, उंगुली, उदर, एवं हृदय गत कण्डरा (स्थूल शिरा ) ओंको प्राप्त करके शरीर में झटका उत्पन्न करता है, कम्पाता है। उस से पीडित रोगी, कफका वमन करता है, उसकी दृष्टि ऊर्ध्व होती है । दोनों पार्श्व भुग्न ( टुटासा हो जाना ) होते हैं, वह मुखको नहीं चला सकता है। वह अन्नपान को भी कष्ट से लेता है ॥ ११ ॥
... . . अर्दितनिदान व लक्षण । विजृभणविभाषणात्काठनभक्षणोद्वगतः। स्थिरोच्चतरशीषभागशयनात्कफाच्छीततः ।। भविष्यति तथादितो विकृतिसिद्रियाणां तथा।
मुख भवति वक्रमक्रमगतिश्च वाक्प्राणनाम् ॥ १२ ॥ .. भावार्थ:-अधिक जभाई आनेसे, अधिक बोलनेसे, कठिन पदार्थों को खानेस, उद्वेगसे, सोतेसमय सिरके नाचे ऊंचा और कठिन तकिया रखकर सोनेसे, कफसे व शीतसे अर्दित नामक रोग होता है । उस रोगमें इंद्रियोंका विकार होता है । मुख वक्र होता है। प्राणियोंका वचन. ठीकक्रमसे नहीं निकलता है । अक्रम होकर निकलेता हैं ॥१२॥
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