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________________ (१२४) कल्याणकारके भावार्थ:--मुखमें जो वायु वास करता है उसे प्राणवायु कहते हैं। वह [स्वस्थावस्थामें ] अन्न पान आदि समस्त भोज्य वर्गको पेटमें पहुंचाता है। यदि वह वायु कुपित होजाय तो आपने नाना प्रकार के तीव्रवेगों द्वारा उत्पादित वेदनासे व्याकुलित करनेवाले दमा, खांसी, हिचकी इत्यादि रोग उत्पन्न होते हैं ॥३॥ उदानवायु। शिरांगत इहाप्युदान इति विश्रुतस्सर्वदा । प्रवर्तयति गीतभाषितविशेषहास्यादिकान् ॥ करोति निभृतार्वजत्रुगतरोगदुःखाकुलं । पुमांसमनिलस्ततः प्रकुपितस्स्वयं कारणैः ॥ ४ ॥ भावार्थ:-मस्तक में रहनेघाला वायु उदान नामसे प्रसिद्ध है । वह [स्वस्थावस्थामें ] गीत, भाषण, हास्य आदिकों को प्रवर्तित करता है । यदि वह स्वकारणसे कुपित होजाय तो कंठ, मुख, कर्ण, मस्तक आदि, जत्रुक हड्डीसे (गर्दनसे ) ऊपर होनेवाले रोगोंको पैदा करता है । ४ ।। समानवायु । समान इति योऽनिलोऽग्निसख उच्यते सर्वदा । वसत्युदर एव भोजनगणस्य संपाचकः ॥ करोति विपरीततामुपगतस्स्वयं प्राणिना-। मनग्निमतिसारमंत्ररुजमुग्रगुल्मादिकान् ॥ ५॥ भावार्थ:----जो वायु उदर ( आमाशय व पक्वाशय ) में रहता है, अग्निके प्रदीप्त होने में सहायक है इसलिये अग्निसख कहलाता है तथा भोजनवर्ग को पचाता है उसको समानवात कहते हैं । यदि वह कुपित होजावें तो, अग्निमांद्य, अतिसार, अंत्राशूल गुल्म आदि उग्र रोगों को पैदा करता है ॥५॥ अपानवायु। अपान इति योऽनिलो वसति बस्तिपकाशये । स वात मलमूत्रशुक्रनिखिलोरुगर्भार्तवम् ॥ स्वकालवशता विनिर्गमयति स्वयं कोपतः । करोति गुदवस्तिसंस्थितमहास्वरूपामयान् ॥ ६ ॥ भावार्थ:-~-अपानवायु बस्ति व पक्काशयमें रहता है । यह योग्य समयमें मलमत्र रजोवार्य आर्तव ( स्त्रियोंके दुष्टरज ) व, गर्भ को बाहर निकालता है। यदि वह कुपित होजाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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