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________________ (६४) कल्याणकारके भावार्थ:-कडुआ कुंदुरीका बेल, कडुआ तुम्बीका का बेल, मार्जारपादी [लता विशेष ] का बेल, (कडुआ) परवल का वेल. करेला का वेल, ये लतायें पंच वल्ली कहलानी हैं । कडु आलुका वेल ये पित्तको दूर करनेवाले हैं । कफको नाश करने वाले हैं । क्रिमिको नाश करनेवाले हैं। कुष्ठरोग के लिए हितकर हैं। कास श्वास [दमा] विषज्वरको शमन करनेवाले हैं । रक्तमें भी हितकर हैं अर्थात् रक्त शुद्धिके कारण हैं ॥३८॥ गृध्रादिवृक्षज फलशाकगुण । गृध्रापाटलपाटलीद्रुमफलान्यारेवतीनेत्रयोः । कर्कोट्यामुशलीफलं वरणकं पिण्डीतकस्यापि च ॥ रूक्षस्वादुहिमानि पित्तकफनिर्णाशानि पाके गुरू-। ण्येतान्याश्वनिलावहान्यतितरां शीघ्रं विषघ्नानि च ॥ ३९॥ भावार्थ:-काकादनी, आशुधान, पाडल नेत्र ( वृक्षविशेष ) ककोडा, मुसली, वरना वृक्ष, पिण्डीतक, ( मदन वृक्ष-तुलसी भेद ) अमलतास इनके फल रूक्ष होते हैं मधुर होते हैं । ठण्डे होते हैं पित्त और कफको दूर करनेवाले होते हैं । पचनमें गुरू हैं शीघ्र ही वात को बढ़ाने वाले और विषको नाश करते हैं ॥ ३९ ॥ पीलू आदि मूलशाक गुण पीलूष्माकशिग्रमललशुनप्रोद्यत्पलाडूंपणा-। द्येलाग्रंथिकपिप्पलीकुलहलान्युष्णानि तीक्ष्णान्यपि । शाकेषक्तकरीरमप्यतितरां श्लष्मानिलघ्नान्यमू न्यग्नेर्दीपनकारणानि सततं रक्तप्रकोपानि च ॥ ४०॥ भावार्थ:-पीलुनामक वृक्ष अदरख, सेजिनियाका जड, लहसन, प्याज कालीमि रच इलायजी पीपलमूल कुलहल नामक क्षुद्रवृक्षविशेष, ये सर्व शाक उष्ण हैं। और तीक्ष्ण हैं । एवं शाकमें कहा हुआ करील भी इसी प्रकारका है । ये सब विशेषतया कफ और वायुको दूर करनेवाले हैं । उदरमें अग्निदीपन करनेवाले हैं । एवं सदा रक्तविकार करनेवाले हैं ॥ ४० ॥ आम्रादि अम्लफल शाकगुण कूष्मांडत्रपुषोरुपुष्पफलिनी कारुकोशातकी। तुंबीबिंबलताफलप्रभृतयो मृष्टाः सुपुष्टिप्रदा ॥ श्लेष्मोद्रेककरास्सुशीतलगुणा पितेऽतिरक्ते हिताः । किंचिद्वातकरा बहिर्गतमलाः पथ्यातिवृष्यास्तथा ॥ ४१॥ १ पुन्नागवृक्षे रोहिष तृणे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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