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(५८)
कल्याणकारके
भावार्थ:-प्रायः सर्व द्विदल ( अरहर चना मसूर आदि) धान्य रूक्ष होते हैं । शीत गुणयुक्त हैं कषाय, व मधुर रस संयुक्त हैं । मलावरोध करते हैं । वात का उद्रेक करते हैं । ये कषायरस युक्त होनेके कारण रक्तपित्तमें हितकर हैं । कुलथी भी उष्ण है, कफ और वात को नाश करती है. गुल्म अष्ठीला यकृत् [ जिगर का बढ़ जाना ] और प्लिहा [ तिल्लीका बढना ] रोग को दूर करनेवाली है । रक्तपित्त को उत्पन्न करनेवाली है ॥ २२ ॥
माष आदि के गुण। भाषाः पिच्छिलशीतलातिमधुरा वृष्यास्तथा बृंहणाः । पाके गौरवकारिणः कफकृतः पित्तामृगाक्षेपणाः । नित्यं भिन्नपुरीपमूत्रपवनाः श्रेष्ठास्सदा शोषिणां ।
साक्षात्केवलवातलाः कफमया राजादिमाषास्तु ते ॥ २३॥ . भावार्थः-उडद लिबलिवाहट होते हैं; शीतल व अति मधुर होते हैं; वाजिकरण करनेवाले व शरीरकी वृद्धि के लिये कारण हैं । पचनमें भारी हैं । कफको उत्पन्न करनेवाले हैं रक्तपित्त को रोकनेवाले हैं । नित्य ही मल मूत्र व वायु को बाहर निकाल ने वाले हैं और क्षयरोगियोंके लिये हितकर है । राजमाष [ रमास ] केवल वात और कफके उत्पादक है ॥ २३ ॥
अरहर आदि के गुण। आढक्यः कफपित्तयोहिततमाः किंचिन्मरुत्कोपनाः । मुद्दास्तत्सदृशास्तथा ज्वरहरा सर्वातिसार हिताः। मुपस्तेषु विशेषतो हितकरः प्रोक्ता मसूरा हिमाः ।
सर्वेषां प्रकृतिस्वदेशसमयव्याधिकमायोजनं ॥ २४ ॥ भावार्थ:--अडहर [तूबर ] धान्य कफ और पित्तके लिये हितकारक हैं, और जरा वातप्रकोप करनेवाला है।
मूंग भी उसी प्रकारके गुणसे युक्त है। एवं ज्वरको नाश करने वाला है । सर्व अतिसार ( अतिसार रोग दस्तोंकी बीमारीको कहते हैं ) रोगमें हितकर है ।
इनके दाल, ज्वर, आतिसार में विशेषतः हितकर है । मसूरका गुण ठण्डा है । इस प्रकार सर्व मनुष्योंकी प्रकृति, देश, काल, रोग इत्यादि की अच्छीतरह जांचकर उसीके अनुकूल धान्यका प्रयोग करना चाहिये ।। २४ ॥
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