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धान्यादिगुणागुणविचार ।
इम सब वातों को जान कर, भोजन के साथ २ योग्य द्रव पदार्थ को ग्रहण करना चाहिये । यदि अनुपान का ग्रहण न करें तो भोजन किया हुआ अन्न आदि शुष्कता को प्राप्त होकर अजीर्णको उत्पन्न करता है और वह प्राणियों के शरीरमें बाधा उत्पन्न करता है'१९ अब भोजनमें उपयुक्त धान्यादिकोंके गुणोंपर विचार करेंगे।
शालिआदि के गुण कथन शालीनां मधुरत्वशीतलगुणाः पाके लघुत्वात्तथा। पित्तघ्नाः कफवर्दनाः प्रतिदिनं मृष्टातिमूत्रास्तु ते । प्रोक्ता बीहिगुणाः कषायमधुराः पित्तानिलघ्नास्ततो ।
नित्यं बद्धपुरीषलक्षणयुताः पाके गुरुत्वान्विताः ॥ २० ॥ भावार्थ:--शालिधान मधुर होता है, ठण्डागुणयुक्त होता है, पचनमें लघु रहता है, अतएव पित्तको दूर करनेवाला है, कफको बढानेवाला है, मूत्रको अधिक लानेवाला है । इसीप्रकार ब्रीहि ( चावलका धान ) कषायला होकर मधुर रहता है । भतएव पित्त और वायुको नाश करनेवाला है । एवं नित्य बद्धमल करनेवाला है । पचनमें भारी है ॥ २० ॥
कुधान्यों के गुण कथन उष्णा रूक्षतराः कषायमधुराः पाके लघुत्वाधिकाः । श्लेष्मघ्नाः पवनातिपित्तजनना विष्टंभिनस्सर्वदा ॥ श्यामाकादिकुधान्यलक्षणमिदं प्रोक्तं नृणामश्नतां ।
सम्यग्वैदलशाकसवगणेष्वत्यादरादुच्यते ॥ २१ ॥ भावार्थ:-साँमा आदि अनेक कुधान्य उप्ण होते हैं, अतिरूक्ष होते हैं । कषाय और मधुर होते हैं। पचनमें हलके हैं। कफको दूर करनेवाले हैं और वात पित्तको उत्पन्न करनेवाले हैं । सदा मलमूत्रका अवरोध करते हैं अर्थात् इस प्रकार साँमा आदि कुधान्योंको खाने से मनुष्यों को अनुभव होता है । अब अच्छे दाल, शाक, द्रव आदि पदार्थ जो खाने योग्य हैं उनके गुण कहेंगे ॥२१॥
द्विदल धान्य गुण रूक्षाः शतिगुणाः कषायमधुरास्सांग्राहिका वातलाः। सर्वे वैदलकाः कषायसहिताः पित्तासजि प्रस्तुताः ॥ उक्ताः सोष्णकुलत्थकाः कफमरुधाधिप्रणाशास्तु ते ।
गुल्माष्ठीलयकृत्प्लिहाविघटनाः पित्तामृगुद्रकिणः ॥ २२ ॥ १-भोजन के बादमें क्या करें इसे जानने के लिये पंचम परिच्छेद श्लोक नं ४३-४४ को देखें।
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