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धान्यादिगुणागुणविचार
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सर्व उपयोगी होगा. हेमंतऋतुमें कडुबा, तीखा, खट्टा, व शीत पदार्थ अहित है और खारा व कषायला द्रव्यसे युक्त भोजन उपयोगी है, घी और तेल, खटाई व मिठाई इस ऋतुमें हितकर है । इस ऋतुमें प्राथः सर्व प्रकार के जल पथ्य होता है ॥ १४ ॥
शिशिर ऋतु में हित। अम्लक्षीरकषायतिक्तलवणास्पष्टमुष्णाधिकं । भोज्यं स्याच्छिशिरे हितं सलिलमप्युक्तं तटाकस्थितं । ज्ञात्वाहारविधानमुक्तमखिलं षण्णामृतूनां क्रमा-।
देयंस्यान्मनुजस्य सात्म्यहितकद्वेलाबुभुक्षावशात् ॥ १५ ॥ भावार्थ:-शिशिरऋतुमें खट्टापदार्थ, दूध, कषायला पदार्थ, कडुआ पदार्थ, नमकीन और अधिक उप्ण गुणयुक्त पदार्थका भोजन करना विशेष हितकर है । जल तालाबका हितकर है । इसप्रकार उपर्युक्त क्रमसे छहों ऋतुके योग्य भोजनविधानको जानकर, समय और भूखकी हालत देखकर, मनुष्यके शरीरकेलिये जो हितकारी व प्रकृतिकेलिये अनुकूल हो ऐसा पदार्थ भोजन पानादिकमें देना चाहिये, वही सर्वदा शरीर संरक्षणकेलिये साधन है ॥ १५ ॥
आहारकाल। विण्मूत्रे च विनिर्गते विचलिते वायौ शरीरे लघौ । शुद्धेऽपींद्रियवाङमनःसुशिथिले कुक्षौ श्रमव्याकुले । कांक्षामप्यशनं प्रति प्रतिदिनं ज्ञात्वा सदा देहिना-।
माहारं विदधीत शास्त्रविधिना वक्ष्यामि युक्तिक्रमं ॥ १६ ॥ भावार्थ:--जिस समय शरीर से मलमूत्र का ठकि २ निर्गमन हो, अपानवायु भी बाहर छूटता हो, शरिर भी लधु हो, पांचों इंद्रिय प्रसन्न हों, लेकिन वचन व मन में शिथिलता आगई हो, पेट भी श्रम [भूक] से व्याकुलित हो तथा भोजन करने की इच्छा भी होती हो, तो वही भोजन के योग्य समय जानना चाहिये । उपरोक्त लक्षण की उपस्थिति को ज्ञातकर उसी समय आयुर्वेदशास्त्रोक्त भोजन विधिके अनुसार भोजन करें। आगे भोजन क्रमको कहेंगे ॥ १६ ॥
भोजनक्रम स्निग्धं यन्मधुरं च पूर्वमशनं मुंजीत भुक्तिक्रमे ।। मध्ये यल्लवणाम्लभक्षणयुतं पश्चात्तु शेषावसान्। ज्ञात्वा सात्म्यबलं सुखासनतले स्वच्छ स्थिरस्तत्परः क्षिप्रं कोष्णमथ द्रवोत्तरतरं सर्वर्तुसाधारणम् ।। १७ ॥
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