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कल्याणकारके
प्रकारसे, वमनादिकके द्वारा शोधन करें । अर्थात् शरीर से प्रथक् करें। यही स्वास्थ्यके रक्षण का उपाय है ऐसा आयुर्वेद के विद्वानोंका मत है ॥ ११ ॥
वसंत ऋतुमे हित । रूक्षक्षारकपायतिक्तकटुकमायं वसंते हितं । भोज्यं पानमपीह तत्समगुणं प्रोक्तं तथा चोषकम् ॥ कौपं ग्राम्यमथाग्नितप्तममलं श्रेष्ठं तथा शीतलं ।
नस्यं सद्वमनं च पूज्यतमामित्येवं जिनेद्रोदितं ॥ १२ ॥ भावार्थ:-----वसंत ऋतुमें रूक्ष, ( रूखा ) क्षार [ खारा ] कषायला, कडुआ, और कटुक ( चरपरा ) रस, प्रायः हितकर होते हैं । एवं भोजन, पान में भी ऊपर कहा गया ] रूक्ष क्षारादि गुण ब रस युक्त पदार्थ हितकर होते हैं । पीनेके लिए पानी कुवे का गाम का हो अथवा अग्निसे तपाकर ठण्डा किया गया हो। इस ऋतु में नस्य व वमन का प्रयोग भी अत्यंत हितकर होता है ऐसा श्रीजिनेंद्र भगवानने कहा है ॥१२॥
ग्रीष्मर्तु व वर्षतुम हित । ग्रीष्मे क्षीरधृतगभूतमशनं श्रेष्ठं तथा शीतल। पानं मान्यगुडे क्षुभक्षणमपि प्राप्त हि कोपं जलं ।। वर्षासूत्करतिक्तमल्पकटुकं प्रायं कषायान्वितं ।
दुग्धक्षुपकरादिकं हितकरं पेयं जलं यच्छ्रितम् ॥ १३ ॥ भावार्थ:-ग्रीष्मकाल में दूध, घी; से युक्त भोजन करना श्रेष्ठ है। एवं ठण्डे पदार्थोका पान करना उपयोगी है । गुड और ईख [गन्ना ] खाना भी हितकर है । कुवे का जल पीना उपयोगी है । बरसातमें अधिक मात्रा में कडुआ कषैलारस; अल्प प्रमाण में कटु [ चरमरा ] रस, या रसयुक्त पदार्थोके सेवन, एवं दूध ईख; या इनके विकार [ इनसे बना हुआ अन्य पदार्थ शक्कर दही आदि ] का उपयोग हितकर है। तथा पीने के लिये जल, गरम होना चाहिये ॥ १३ ॥
सक्षीरं घृतशर्कराव्यमशनं तिक्तं कषायान्वितं । सर्व स्यात्सलिलं हितं शरदि तच्छ्योऽर्थिनां प्राणिनां । हेमंत कटुतिक्तशीतमहितं क्षारं कषायादिकं ।
सर्पिरतैलसमेतमम्लमधुरं पथ्यं जलं चोच्यते ॥ १४ ॥ भावार्थ:-श्रेय को चाहने वाले प्राणियोंकों शरत्कालमें घो शक्करसे युक्त भोजन व कषायला पदार्थस युक्त, भोजन हितकर है । जल तो नदी कुआ, तालाब वगैरेहका
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