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सूत्रव्यावर्णनम्
( ४५ )
भावार्थ:- - दोषोंके प्रत्येक के हिसाब से तीन भेद हैं यथा - वात १ पित्त २ कफ ३ संयोग [द्वंद] के कारण तीन भेद होते हैं. यथा - वातपि १ वातकफ २ कफ पित्त ३, सन्निपात के कारण ४ भेद होते हैं यथा - वातपित्तकफ १, मन्दकफवातपित्ताधिक २, मन्दपित्तवातकफाधिक ३, मंदवातपित्तकफाधिक ४ इस प्रकार दोषोंके भेद दस हैं । रक्त की भी दोषोंके साथ गणना है अर्थात् रक्त को दोष संज्ञा हैं । वातादिदूषकों द्वारा दूषित होनेके कारण वही रक्त धातु भी कहलाता है ॥ ६१ ॥
प्रकुपित्तदोषका लक्षण
तेषां प्रकोपादुदरे सतोदः । संचारकः साम्लकदाहदोषाः ॥ हल्लासतारोचकताच दोषास्ससंख्यानतो लक्षणमुच्यतेऽतः ॥ ६२ ॥
भावार्थ:- - उन बातादि दोषोंके प्रकोपसे, क्रमशः अर्थात् वातप्रकोप से पेटमें इधर उधर चलनेवाली, तुदनवत् (सुईचुभने जैसी) पीडा आदि होती हैं । पित्तप्रकोपसे, खड्डापना, दाह आदि लक्षण होते हैं । कफ प्रकोपसे, डकार, अरुचि आदि लक्षण प्रकट होते हैं । आगे दोषक्रमसे, इनके प्रकोप का लक्षण विशेष रीतिसे कहेंगे ॥ ६२ ॥
वात प्रकोप के लक्षण !
संभेदोत्ताडनतोदनानि संछेदनोन्मंथनसादनानि
विक्षेपनिंर्देशनभंजनानि विस्फाटनोत्पाटनकंपनानि ॥ ६३ ॥ विश्लेषणस्तंभनजृंभणानि निःस्वासनाकुंचनसारणानि । नानातिदुःखान्यनिमित्तकानि वातप्रकोपे खलु संभवति ।। ६४ ।।
भावार्थ:-शरीर टूटासा होना, कोई मारते हों ऐसा अनुभव होना, सुई चुभने जैसी पीडा होना, कोई काटते हों ऐसा होना, कोई मसलते हों ऐसा अनुभव आना,
शरीरका गलना, हाथ पैर आदि को इधर उधर फेंकना शरीरमें कुछ डसा हो ऐसा अनुभव होना, शरीरका टुकडा होगया हो ऐसा अनुभव होना, शरीरमें फफोले उठने जैसी पीडा हो, फटा जैसा अनुभव होना, कंप होना, शरीर के अंग प्रत्यंग भिन्न २ होगये हों ऐसा अनुभव होना, बिलकुल स्तब्ध होना, जंाई अधिक आना, आधक श्वास छूटना शरीरका संकोच होना और प्रसारण होना इत्यादि अनेक अकस्मात् प्रकार के दुःख, वात प्रकोप होने पर होते हैं ॥ ६३ ॥ ६४ ॥
पित्तप्रकोप लक्षण उष्मातिशोषातिविमोहदाहधूमायनारोचकरोषातापाः
देहोष्मतास्वेद बहुप्रलापाः पित्तप्रकोपे प्रभवंति रोगाः ॥ ६५ ॥
१ - वात, पित्त, कफ ये तीनों दोष धातुओंको दूषित करते हैं इसलिए दूषक कहलाते हैं ।
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