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________________ स्वास्थ्यरक्षणाधिकारः (१३ ) उत्पात, कलह, आगलगना, आदि सब अपशकुन हैं । वैसे अपशकुनोंको टालना चाहिये तात्पर्य यह है कि ऐसे अपशकुनोंको देखकर निश्चय करना चाहिये रोगी की आयु थोडी रह गई है ॥ ३६ ॥ मार्जारसर्पशशशल्यककाष्ठधाराण्यग्निवराहमहिषा नकुलाः शृगालाः रक्ताः स्रजस्समलिना रजकस्य भाराः अभ्यागताः समृतकाः परिवर्जनयिाः ॥ ३७ ॥ भावार्थ:-रोगकि घर जाते समय सामने से आनेवाले मार्जार, सर्प, खरगोश, आपत्ति, लकडीका गट्टा, अग्नि, सूअर, भैंस,नौला लोमडी, लालवर्णकी पुष्पमाला, मलिनवस्त्र, व शरीरादि से युक्त मनुष्य अथवा चाण्डाल आदि नीच जातिके मनुष्य धोबीके कपडे, मुर्देके साथ के मनुष्य ये सब अपशकुन हैं ॥ ३७ ॥ शुभशकुन शांतासु दिक्षु शकुनाः पटहोरुभेरी शंखांबुदप्रवरवंशमृदंगनादाः छत्रध्वजा नृपसुतः सितवस्त्रकन्याः गीतानुकूलमृदुसौरभगंधवाहाः ॥ ३८॥ श्वेताक्षताम्बुरुहकुक्कुटनीलकंठा लीलाविलासललिता वनिता गजेंद्राः स्वच्छांबुपूरितघटा वृषवाजिनश्च प्रस्थानपारसमयेऽभिमुखाः प्रशस्ताः ॥ ६९॥ भावार्थः-प्रस्थान करते समय वैद्यको सभी दिशायें शांत रहकर पटह, भेरी, शंख, मेघ, बांसुरी, मृदंग आदिके शुभ शब्द सुनाई देरहे हों, सामनेसे छत्र, ध्वजा, राजपुत्र, धवलवस्त्रधारिणीकन्या, शीत अनुकूल व सुगंधि हवा, सफेद अक्षत, कमल, कुक्कुट, मयूर, खेल व विनोदमें मग्न स्त्रियां हाथी व स्वच्छ पानीसे भरा हुआ घडा, बैल, घोडा आदि आवें तो प्रशस्त हैं । शुभशकुन हैं । इनसे वैद्यको विजय होगी ॥३८॥३९॥ एवं महाशकुनवर्गनिरूपितश्रीः पाप्यातुरं प्रवरलक्षणलक्षितांगम् दृष्ट्वा विचार्य परमायुरपीह वैद्यो यातं कियत्कियदनागतमेव पश्येत् ॥ ४०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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