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स्वास्थ्यरक्षणाधिकारः
चिकित्सापद्धति
प्रश्नैर्निमित्तविधिना शकुनागमेन ज्योतिर्विशेषतरलग्नशशांक योगैः स्वप्नैश्च दिव्यकथितैरपि चातुराणा
मायुः प्रमाणमधिगम्य भिषग्यते ॥ ३० ॥
भावार्थ:- रोगीकी परिस्थितिसंबंधी प्रश्न, निमित्तसूचना, शकुन, ज्योतिष शास्त्र लग्न, चंद्रयोग आदि, स्वप्न व दिव्यज्ञानियोंका कथन आदि द्वारा रोगीके आयु प्रमाणको जानकर वैद्य चिकित्सा में प्रयत्न करें ॥ ३० ॥
रिष्टर्विना न मरणं भवतीह जंतोः स्थानव्यतिक्रमणतोऽतिसुसूक्ष्मतो वा कृच्छ्राण्यपि प्रथितभूतभवद्भविष्यद्रूपाणि यत्नविधिनात भिषक्प्रपश्येत् ।। ३१ ।।
भावार्थ:-- रिष्ट ( मरणसूचक चिन्ह ) के प्रगट हुए बिना प्राणियोंका मरण नहीं होता है, अर्थात् मरने के पहिले मरणसूचक चिन्ह अवश्यमेव प्रकट होता है । इसलिये वैद्य का कर्तव्य है, कि जानने में अत्यंत कठिन ऐसे भूत, वर्तमान, और भवियत्काल में होने वाले मरण लक्षणों को, स्थान के परिवर्तन करके, और अत्यंत सूक्ष्म रीति से प्रयत्नपूर्वक वह देखें, ॥ ३१ ॥
अरिलक्षण
रिष्टान्यपि प्रकृतिदेहनिजस्वभावच्छायाकृतिप्रवरलक्षणवैपरीत्यम् पंचेंद्रियार्थविकृतिश्च शकृत्कफानां तोये निमज्जनमथातुरनाशहेतुः || ३२ ||
भावार्थ:-- वातपित्तकफप्रकृति, देह का स्वाभाविक स्वभाव, छाया, आकार आदि जब अपने लक्षणसे विपरीतता को धारण करते हैं उसे मरण चिन्ह ( रिष्ट ) समझना चाहिये | पंचेंद्रियोंमें बिकार होजाना व मल और कफको पानीमें डालने पर इबजाना यह सब उस रोगीके मरणका चिन्ह हैं ॥ ३२ ॥
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( ११ )
१ - मरण चिन्ह किसी नियत अंग प्रत्यंगो में ही नहीं होता है शरीरके प्रत्येक अवयव में हो सकता है, इसलिये उन को पहिचान ने के लिये, एक अंगको छोडकर, दूसरा, दूसरा छोडकर तीसरा अंग, इस प्रकार प्रत्येक स्थान या अंगो को परिवर्तन कर के देखें ॥
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