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________________ स्वास्थ्यरक्षणाधिकारः वैद्यशद्वकी व्युत्पत्ति विद्येति सत्प्रकटकेवललोचनाख्या तस्यां यदेतदुपपन्नमुदारशास्त्रम् वैद्यं वदंति पदशास्त्रविशेषणज्ञा एतद्विचिन्त्य च पठंति च तेऽपि वैद्याः॥१८॥ भावार्थ:--अच्छीतरह उत्पन्न केवलज्ञानरूपी नेत्रको विद्या कहते हैं। उस विद्यासे उत्पन्न उदारशास्त्रको वैद्यशास्त्र ऐसा व्याकरणशास्त्रके विशेषको जाननेवाले विद्वान कहते हैं । उस वैद्यशास्त्रको जो लोग अच्छीतरह मनन कर पढते हैं उन्हें भी वैद्य कहते हैं ॥१८॥ . आयुर्वेदशद्रका अर्थ वेदोऽयमित्यपि च बोधविचारलाभात्तत्वार्थमूचकवचः खलु धातुभेदात् आयुश्च तेन सह पूर्वनिबद्धमुद्य च्छास्त्राभिधानमपरं प्रवदंति तज्ज्ञाः ॥ १९ ॥ भावार्थ:- वैद्यशास्त्रको जाननेवाले, इस शास्त्रको, आयुर्वेद भी कहते हैं । वेदशब्द विद् धातुसे बनता है। मूलधातुका अर्थ, ज्ञान, विचार, और लाभ होता है। इस प्रकार धातु के अनेकार्थ होनेसे यहां वेद शब्दका अर्थ, वस्तुके यथार्थ स्वरूपको, बताने वाला है, इस वेद शद्बके पीछे आयुः शब्द जोड दिया जाय तो ' आयुर्वेद ' बनता है जिससे यह स्पष्ट होता है कि जो हितआयु, अहितआयु, सुखायु, दुःखायु इनके स्वरूप, आयुष्य लक्षण, आयुष्यप्रमाण, आयुके लिए हिताहित द्रव्य इत्यादि आयुसम्बन्धी यथार्थस्वरूप को प्रतिपादन करता है उस का नाम आयुर्वेद है । इसलिए यह नाम अन्वर्थ है ॥ १९ ॥ शिष्यगुणलक्षणकथनप्रतिज्ञा एवंविधस्य भुवनैकहिताधिकोद्यद्वैद्यस्य भाजनतया प्रविकाल्पता ये तानत्र साधुगुणलक्षणसाम्यरूपा न्वक्ष्यामहे जिनपतिप्रतिपन्नमार्गात् ।। २० ॥ भावार्थ:-समस्त संसार का हित करना ही जिनका उद्देश है अथवा हित करने में उद्युक्त हैं ऐसे वैद्य, या आयुर्वेदशास्त्र के अध्ययनके लिये, पूर्वाचार्योने जिन को योग्य बतलाया हैं उनमें क्या गुण होना चाहिये, उनके लक्षण क्या हैं, रूप कैसा रहना चाहिये इत्यादि बातोंको जिनशासन के अनुसार आगे प्रतिपादन करेंगे ऐसा आचार्यश्री कहते हैं ॥ २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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