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________________ जीवसमास अंगार, ज्वाला, अर्चि ( अग्निकिरण ), मुर्मुर (निर्धूम और ऊपर राखसे ढंकी हुई अग्नि) शुद्ध-अग्नि ( बिजली और सूर्यकान्तमणिसे उत्पन्न अग्नि) और धूमवाली अग्नि इत्यादि अन्य अनेक प्रकारके तेजस्कायिक जीव कहे गये हैं ।।७।। वायुकायिक जीवोंके भेद 'वाउब्भामो उक्कलि मंडलि गुंजा महाघण तणू य । एदे दुवाउकाया जीवा जिणसासणे दिट्ठा ॥८॥ सामान्य वायु, उद्घाम (ऊर्ध्व भ्रमणशील ) वायु, उत्कलिका (अधोभ्रमणशील और तिर्यक बहनेवाली), मण्डलिका (गोलरूपसे बहनेवाली वायु ), गुंजा (गुंजायमान वायु ), महावात (वृक्षादिकको गिरा देनेवाली वायु), घनवात और तनुवात इत्यादिक अनेक प्रकारके वायुकायिक जीव जिनशासनमें कहे गये हैं ।।८०॥ वनस्पतिकायिक जीवोंके भेद "मूलग्गपोरबीया कंदा तह खंध बीय बीयरुहा।। सम्मुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया ये ॥१॥ मूलबीज, अग्रवीज, पर्वबीज, कन्दबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह और सम्मूच्छिम, ये नाना प्रकार के प्रत्येक और अनन्तकाय (साधारण) वनस्पतिकायिक जीव कहे गये हैं ।।८।। साहारणमाहारो साहारण आणपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं भणियं ॥२॥ साधारण अर्थात् अनन्तकायिक वनस्पति जीवोंका साधारण अर्थात् समान ही आहार होता है और साधारण ही श्वास-उच्छासका ग्रहण होता है, इस प्रकार साधारण जीवोंका साधारण लक्षण कहा गया है ॥२॥ 'जत्थेक मरइ जीवो तत्थ दु मरणं हवे अणंताणं । चक्कमइ जत्थ एको तत्थक्कमणं अणंताणं ॥८३॥ साधारण जीवोंमें जहाँ एक मरता है, वहाँ उसी समय अनन्त जीवोंका मरण होता है और जहाँ एक जन्म धारण करता है, वहाँ अनन्त जीवोंका जन्म होता है ॥८३।। एयणिओयसरीरे जीवा दव्वप्पमाणदो दिट्ठा । सिद्धेहि अणंतगुणा सव्वेण वितीदकालेण ॥८४॥ एक निगोदिया जीवके शरीर में द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा सिद्धोंसे और सर्वव्यतीत कालसे अनन्तगुणित जीव सर्वदर्शियोंके द्वारा देखे गये हैं ।।४।। 1. सं० पञ्चसं० १,१५८ । 2. १, १५९ । 3. १, १०५ । 4. १, १०७ । १. मूला० २१३ । ध०भा० १ पृ. २७३ गार १५२ । २. ध० भा० १ पृ. २७३ गा० १५३ । गो० जी० १८५। ३. ध० भा० १ पृ. २७० गा० १४५। गो० जी० १११। ४. ध० भा० १ पृ० २७० गा० १४६ । गो० जी० १६२ । ५. ध०, भा० १, पृ० २७० गा० १४७ । गो० जी० १५६ ।। दव -उकिल । ब -माण । ब द चकमणं तत्थ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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