SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिथ्यात्व गुणस्थानमें नामकर्मके बन्ध, उदय और सत्त्वस्थान सासादन मिश्र अविरत देशविरत प्रमत्तविरत अप्रमत्तविरत अपूर्व करण अनिवृत्तिकरण " 37 33 निरूपण योग मार्गणामें वेदमार्गणा में कषायमार्गणामें ज्ञानमार्गणा में संयममार्गणा में दर्शनमार्गणा में लेवामार्गणाम भग्यमार्गणा में 23 Jain Education International " 33 31 "" 11 11 33 " " 23 33 "3 "1 "" 31 21 33 "1 13 सूक्ष्मसाम्पराय क्षीणकषाय सयोगिकेवली अयोगिकेवली सप्ततिकाकारद्वारा मार्गणाओंमें नामकर्मके बन्धादि स्थानोंका निर्देश करते हुए गति मार्गणा में निरूपण 23 71 37 37 33 27 13 " भाष्यगाथाकार द्वारा नरक गतिमें उक्त बन्धादि स्थानोंका निरूपण " 17 31 13 ४९३ तिर्यग्गतिमें नामकर्मके बन्धादि स्थानोंका निरूपण ४९४ मनुष्यगतिमें देवगति में सप्ततिकाकार द्वारा इन्द्रिय मार्गणाओंमें उक्त स्थानोंका निर्देश भाष्यगाथाकार द्वारा एकेन्द्रिय जीवोंमें उक्त स्थानोंका निर्देश 11 "1 विकलेन्द्रिय जीवोंमें उक्त स्थानोंका निर्देश पंचेन्द्रिय जीवोंमें कायमार्गणा में नामकर्मके बन्धादि स्थानोंका 11 " 33 33 33 "7 " 23 " 31 33 "3 11 19 33 17 37 27 " प्रन्थ विषय-सूची 31 "" ४८७ ४८७ ४८८ ४८८ ४८९ ४८९ ४९० ४९० ४९१ ४९१ ४९१ ४९१ ४९२ ४९३ 4 ४९४ ४९५ ४९६ ४९६ ४९७ ४९७ ४९८ ४९९-५०१ ५०१ ५०२ ५०२-५०३ ५०४-५०६ ५०६ ५०७-५०८ ५०८-५०९ सम्यक्त्वमार्गणा में नामकर्मके बन्धादि स्थानोंका निरूपण संज्ञिमार्गणा में आहारमार्गणा में 37 "" "" 17 For Private & Personal Use Only "" संस्कृत टीकाकार द्वारा चौदह मार्गणाओंमें नामकर्मके उक्त बन्ध, उदय और सत्त्वस्थानोंकी अंकसं दृष्टि ५०९-५११ ५११-५१२ ५१२-५१३ 37 सप्ततिकाकार द्वारा उपर्युक्त अर्थका उपसंहार और विशेष जानने के लिए आवश्यक निर्देश ५१८ इकतालीस प्रकृतियोंमें उदयकी अपेक्षा उदीरणागत विशेषताका निरूपण उक्त इकतालीस प्रकृतियोंका नाम-निर्देश उक्त इकतालीस प्रकृतियोंमें नामकर्म सम्बन्धी गौ प्रकृतियों का निरूपण सप्ततिकाकार द्वारा गुणस्थानोंमें कर्मप्रकृतियोंके बन्धका वर्णन भाष्यगाथाकार द्वारा मिथ्यात्व और सासावन में बंधनेवाली प्रकृतियोंका वर्णन असंयत देशसंयत और प्रमत्तसंयतके बंधनेवाली प्रकृतियों का वर्णन अप्रमत्त और अपूर्वकरण के बंधनेवाली प्रकृतियोंका वर्णन ५१३-५१८ ५३ "" भाष्यगाथाकार द्वारा उक्त अर्थका स्पष्टीकरण सप्ततिकाकारद्वारा दर्शन मोहकर्मके उपशमन करनेका विधान सप्ततिकाकार द्वारा चरित्र मोहके उपशमन करनेका विधान भाष्यगाथाकार द्वारा उपशान्त होनेवाली प्रकृतियोंके क्रमका निरूपण सप्ततिकाकार द्वारा कर्मप्रकृतियों के क्षपणका विधान भाष्यगाथाकार द्वारा अयोगिकेवलीके द्विचरम समय और चरम समयोंमें क्षय होनेवाली प्रकृतियों का नाम-निर्देश ५१९ ५२० ५२२-५२३ ५२१ अनिवृत्तिकरण आदिके सप्ततिकाकार द्वारा मार्गणाओंमें भी बन्धस्वामित्वको जाननेकी सूचना सप्ततिकाकार-द्वारा चारों गतियोंमें कर्म प्रकृतियोंके सत्त्वका निरूपण ५२४ ५२४ ५२५ ५२६ ५२७ ५२८ ५२८ ५२८ ५२९ ५३० ५३१-५३३ ५३४-५३६ www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy