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________________ ५८. पबासंग्रह * " " " ४६९ मिथ्यादृष्टिके योगसम्बन्धी भंगोंका निरूपण ४४९ अप्रमत्तविरत और अपूर्वकरणमें उपयोगकी अपेक्षा सासादन सम्यग्दृष्टिके " ४५० उदयप्रकृतिगत पदवृन्दोंका निरूपण ४६९ सम्यग्मिथ्यादृष्टिके " ४५० अनिवृत्तिकरणमें अविरत सम्यग्दृष्टिके ४५० सर्वगुणस्थानोंके उक्त पदवन्दोंका योग ४६९-४७० देशविरतके ४५० लेश्याओंकी अपेक्षा गुणस्थानों में मोहके उदयस्थान प्रमत्त विरतके ४५१ जाननेकी सूचना और उनमें सम्भव लेश्याओंअप्रमत्त विरतके " ४५१ का निरूपण ४७०.४७१ अपूर्वकरणके ४५१ मिथ्यात्व और सासादनमें लेश्याओंकी अपेक्षा मोहके योग सम्बन्धी सर्व भंगोंका निर्देश ४५२ उदय-भंग ४७१ सासादन गुणस्थानों में योगसम्बन्धी भंग-गत मिश्र और अविरतमें " " ४७२ विशेषताका निरूपण ४५३ देश,प्रमत्त और अप्रमत्त विरतमें अविरत गणस्थानमें उक्त विशेषताका निरूपण ४५३ अपूर्वकरणमें " " " ४७३ अनिवत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानके अनिवृत्तिकरणमें " " "सान योग सम्बन्धी भंगों का निरूपण ४५५, उपर्यक्त सर्व उदय-विकल्पोंका प्रमाण ४७३ गुणस्थानोंमें सम्भव सर्व योग-भंगों का उपसंहार ४५६ लेश्याओंकी अपेक्षा मोहकर्मके पदवन्दोका निरूपण४७४ गणस्थानों में योगके पदवृन्दों का निरूपण ४५६ mm मिथ्यात्व और सासादनमें " " मिथ्यादष्टिके योगसम्बन्धी पदवन्दोंका निरूपण ४५७ मिश्र और अविरतमें " " सासादन गणस्थानमें " " " ४५८ देशविरत और प्रमत्तविरतमें ". " ४७४ मिश्र गुणस्थानमें " ४५८ अप्रमत्तविरत और अपूर्वकरणमें " " ४७४ अविरत गुणस्थानमें ४५९ अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्म साम्परायमें" देशविरत गुणस्थानमें ४५९ उपर्युक्त सर्व पदवृन्दों का परिमाण प्रमत्तविरत " ४५९ ४६० वेदको अपेक्षा मोहकर्मके उदय विकल्पों का अपूर्वकरण ".. ४६० निरूपण ४७६ उक्त सर्वगुणस्थानों के पदवृन्दों के प्रमाणका वेदकी अपेक्षा मोहकर्मके पदवृन्दोंका वर्णन ४७७ निरूपण ४६० संयमकी अपेक्षा मोहकर्मके उदय-विकल्पोंका सासादन गुणस्थानगत विशेष भंगों का निरूपण ४६१ निरूपण ४७८ अविरत - " " " " ४६२ संयमको अपेक्षा मोहकर्मके पदवृन्दोंका वर्णन ४७९ मोहकर्मके योगों की अपेक्षा सम्भव सर्वभंगों का सम्यक्त्वकी अपेक्षा मोहकर्मके उदय-विकल्प ४८० निरूपण सम्यक्त्वकी अपेक्षा मोहकर्मके पदवृन्दोंकी संख्या ४८१ उपयोगकी अपेक्षा गुणस्थानों में मोहकर्मके उदय- सप्ततिकाकार-द्वारा गणस्थानोंमें मोहकर्मके स्थानगत भंगोंका निरूपण ४६५-४६७ सत्त्वस्थानोंका निरूपण ४८२ गुणस्थानों में उपयोगकी अपेक्षा मोहकर्मकी उदय भाष्यगाथाकार-द्वारा उक्त कथनका स्पष्टीकरण प्रकृतियोंकी संख्या जाननेकी सूचना ४६७ ४८३-४८५ मिथ्यात्व और सासादनमें उपयोगकी अपेक्षा सप्ततिकाकार-द्वारा गुणस्थानोंमें नामकर्मके बन्ध, उदय प्रकृतिगत पदवृन्दोंका निरूपण ४६८ उदय और सत्त्वस्थानोंका निर्देश मिश्र और अविरतमें " " " ४६८ भाष्य गाथाकार-द्वारा उक्त विसंयोगी स्थानोंका। देशविरत और प्रमत्तविरतमें" " " ४६९ स्पष्टीकरण ४८७ अप्रमत्तविरत " " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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