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पश्वसंग्रह
अयोगिकेवलीके उदयमें आनेवाली प्रकृतियोका सप्ततिकाकार-द्वारा अपनी लघुताका प्रदर्शन ५३९ निरूपण ५३६-५३७ संस्कृतटीकाकारको प्रशस्ति
५४० अयोगि जिनके मनुष्यानुपूर्वीका उदय किस क्षण तक रहता है, इस बातका सयुक्तिक परिशिष्ट
७४५-७८४ निरूपण ५३७ १ संदष्टियाँ
७४५-७५४ कर्म-क्षयसे प्राप्त होनेवाली अवस्था विशेषका
२ सभाष्य प्रा०पञ्चसंग्रह-गाथानुक्रमणिका ७५५-७६६ वर्णन ५३८ ३ संस्कृतटीकोद्धृत-पद्यानुक्रमणी
७६७ सप्ततिकाकार-द्वारा प्रकरणका उपसंहार और
४ प्राकृत वृत्तिगत-पद्यानुक्रमणी ७६८-७७३ आवश्यक ज्ञातव्य तत्त्वका निर्देश ५३८ ५ संकृत पञ्चसंग्रहस्थश्लोकानुक्रमः ७७४-७८४
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