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प्रन्थ-विषय-सूर
५१
१४२
तेरह , चौदह "
२४७
" १५०
१७४
ग्यारह , बारह " तेरह " चौदह "
" १५१
सम्यग्मिध्यादृष्टिके ग्यारह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी
वेदनीय कर्म के विशेष बन्ध-प्रत्यय वर्णन १६८ - भंगोंका निरूपण
दर्शन मोहनीय कर्मके सम्यग्मिथ्यादृष्टिके बारह ,
चारित्र मोहनीय कर्मके ,, नरकायु कर्मके
१७० १४५ तिर्यगायु कर्मके
१७० पन्द्रह , , , १४६ मनुष्यायु कर्मके
१७१ सोलह, ". " देवायु कर्मके
१७१ असंयत सम्यग्दृष्टिके बन्ध-प्रत्ययगत विशेषताका
नाम कर्मके
१७२ निरूपण
१४८
गोत्र कर्मके विशेष बन्ध-प्रत्ययोंका निरूपण १७२ असंयत सम्यग्दृष्टिके नौ बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी
अन्तराय कर्मके , " "
१७३ भंगोंका निरूपण
कर्मोके विशेष बन्ध-प्रत्ययोंका निरूपण अनुभागअसंयत सम्यग्दृष्टिके दस ,
बन्धकी अपेक्षासे जानना चाहिए कर्मोके बन्ध, उदय और सत्त्व स्थानोंका निरूपण १७४
शतककार-द्वारा गुणस्थानोंमें मूल कर्मोके बन्ध१५२ स्थानोंका वर्णन
१७४ १५३ भाष्य गाथाकार-द्वारा उक्त अर्थका स्पष्टीकरण १७५ पन्द्रह ,,
१५४ शतककार-द्वारा गुणस्थानोंमें, उदयस्थानोंमें उदयसोलह, , ,.. १५५ स्थानोंका निरूपण
१७५ देशसंयतके सम्भव बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी गुणकार १५६ भाष्य गाथाकार-द्वारा उदीरकोंका कथन १७६ देशसंयतके आठ बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भंगोंका
शतककार-द्वारा उदीरकोंका विशेष निरूपण १७६-१८० - निरूपण
१५७
प्रकृति बन्धसे सादि-अनादि आदि नौ भेदोंका देशसंयतके
१५७ कथन
१८१ दश " , १५८ उक्त बन्ध-भेदोंका स्वरूप
१८२ ग्यारह " " " ११० मूल प्रकृतियोंके सादि-आदि बन्धोंका निरूपण १८२
उत्तर प्रकृतियोंके ,
१६१ ध्रुवबन्धी प्रकृतियोंका निरूपण चौदह
, १६२
निष्प्रतिपक्ष अध्रुवबन्धी प्रकृतियाँ प्रमत्तसंयतके बन्ध-प्रत्यय-गत विशेषताका निरूपण १६२ सत्प्रतिपक्ष अध्रुवबन्धी प्रकृतियाँ
१८४ प्रमत्तसंयतके पाँच बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भंगोंका
मूल प्रकृतिस्थान और भुजाकारादिका निरूपण १८४ निरूपण
१६३
उत्तर प्रकृतियोंके प्रकृतिस्थान और प्रमत्तसंयतके छह Na .७९
" " " भुजाकारादिका वर्णन
१८६ प्रमत्तसंयतके सात ,
दर्शनावरण कर्मके बन्धस्थानोंका वर्णन
१८६ अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरण संयतके बन्ध
दर्शनावरण कर्मके भुजाकार बन्धोंका वर्णन १८६ - प्रत्यय और उनके भंगोंका निरूपण
१६४
दर्शनावरण कर्मके बन्धस्थानोंका गणस्थानोंमें अनिवृत्तिकरण संयतके बन्ध-प्रत्यय और उनके
निरूपण भंगोंका निरूपण
१८७ १६५
मोहकर्मके बन्धस्थान और भजाकारादिका वर्णन १८८ सूक्ष्मसाम्परायादि शेष गुणस्थानोंके बन्ध-प्रत्यय और उनके भंगोंका निरूपण
मोहकर्मके दश बन्धस्थानोंका निरूपण १८८ ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मके विशेष बन्ध
उक्त बन्धस्थानोंका प्रकृति निर्देशपूर्वक प्रत्यय वर्णन
गुणस्थानोंमें वर्णन
१८८-१९१
बारह तेरह
१८३
॥
१८३ १८३
mro
१६७
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