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________________ सहतिका चौबीससे गुणा करने पर वे सर्व पदवृन्द भङ्ग छयासी हजार आठ सौ अस्सी (८६८८०) होते हैं ॥३५॥ विशेषार्थ-मिथ्यात्वसे लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान तक सर्व पदवृन्द-भङ्ग ८६८८० होते हैं, उनका विवरण इस प्रकार है गुणस्थान उदयपदवृन्द सर्वभङ्ग मिथ्यात्व ७८८४२४ = १८६१२ सासादन ३८४४२४%= ६२१६ मिश्र ३२०x२४ = ७६८० अविरत . ६००x२४ = १४४०० देशविरत ४६८४२४%D ११२३२ प्रमत्तविरत ४८४४२४%D ११६१६ अप्रमत्तविरत ३६६x२४ = ६५०४ अपूर्वकरण १८०४२४= ४३२० इस प्रकार उक्त सर्व भङ्गोंका योग=८६८८० अब सासादन गुणस्थानगत विशेष भंगोंका निरूपण करते हैं 'बत्तीसं आसादे वेउव्वियमिस्स सोलसेण हया । पंचसयाणि य णियमा बारससंजुत्तया य तहा ॥३५६॥ सासादनाविरतयोविशेषमाह- [ 'बत्तीसं भासादे' इत्यादि । ] सासादनस्य वैक्रियिकमिश्रयोगे माम एषामुदया द्वात्रिंशत् ३२ ! स्त्री-पुंवेदौ २ हास्यादिद्वयं २ कषायचतुष्कं ४ परस्परं गुणिता षोडश १६ तैर्गुणिताः पुनः द्वात्रिंशत् इति द्वादशोत्तरपञ्चशतप्रमिताः ५१२ पदबन्धाः स्युः । सासादनो नरकं न यातीति तस्य नपुंसकवेदो नास्ति ॥३५६॥ __ सासादन गुणस्थानमें सर्व प्रकृतियाँ बत्तीस हैं। उन्हें वैक्रियिकमिश्रकाययोग-सम्बन्धी सोलह भंगोंसे गुणा करने पर नियमसे पाँचसौ बारह भंग प्राप्त होते हैं ॥३५६।। 'सासणे उदया ८८ एएसि पयडीओ ३२ । पुम्वुत्तसोलस-भंगगुणा वेउब्वियमिस्सजोगहया अण्णे वि पयबंधा ५१२ । तथाहि-सासादनस्य ८८ एतेषां प्रकृतयः ३२ पूर्वोक्तषोडशभिर्भङ्गैर्गुणिता वैक्रियिकमिश्रयोगेन १ हताश्च अन्ये पदबन्धाः ५१२ । सासादनमें उदयस्थान ६, ८, ८ और ७ हैं। इनकी उदयप्रकृतियाँ ३२ होती हैं। इस गुणस्थानवाला नरकमें नहीं जाता है, इसलिए बत्तीसको दो ही वेदोंके परिवर्तनसे सम्भव सोलह भंगोंसे गुणा करने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगसम्बन्धी ५१२ अन्य भी पदवृन्द-भंग होते हैं। 1. सं० पञ्चसं० ५, ३७० । 2. ५, 'सासने चत्वारः पाकाः' इत्यादिगद्यभागः । (पृ० २०८)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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