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________________ ४२० पञ्चसंग्रह एकेन्द्रियबादरपर्याप्तके बम्धाः २३।२५।२६।२६।३०। उदयाः २१२४।२५।२६।२७ । सत्ताः १२ २ । बादर पर्याप्त जीवसमासमें वे ही पूर्वोक्त पाँच बन्धस्थान और पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। किन्तु उदयस्थान इक्कीस प्रकृतिसे लेकर सत्ताईस प्रकृतिक तकके पाँच होते हैं ॥२७५।। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकमें बन्धस्थान २१, २५, २६, २६, ३० होते हैं। उदयस्थान २१, २४, २५, २६, २७ होते हैं और सत्त्वस्थान ६२, ६०, ८८,८४, ८२ होते हैं । वियलिंदिएसु तेच्चिय पुव्वुत्ता बंध-संतठाणाणि । तीसिगितीसुगुतीसा इगिछव्वीसट्टवीसुदया ॥२७६॥ विलिदिएसु बंधा २३।२५।२६।२६।३० । उदया २१॥२६॥२८॥२६॥३०॥३१ संता ६२।६०1८८ ८४८२। विकलत्रये पर्याप्ते तान्येव पूर्व सूचमोक्तबन्ध-सत्वस्थानानि २३।२५।२६।२६।३० । सत्ता, १२।१०। 1८1८४८२ । त्रिंशत्कं ३० एकत्रिंशत्कं ३१ एकोनत्रिंशत्कं २६ एकविंशतिकं २१ षड्विंशतिकं २६ अष्टाविशतिकं २८ इत्युदयस्थानानि षड़ भवन्ति ॥२७६॥ विकलबयप र्याप्तजीवसमासेषु प्रत्येकं बन्धाः २३।१५।२६।२६।३०। उदयाः २१।२६।२८।२६।३०॥ ३१ । सत्यानि १२1801८८1८४२ । विकलेन्द्रिय जीवसमासोंमें वे ही पूर्वोक्त पाँच बन्धस्थान और पाँच सत्तास्थान होते हैं। किन्तु उदयस्थान इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक छह होते हैं ॥२७६॥ विकलेन्द्रियोंमें बन्धस्थान २३, २५, २६, २६, ३०; उदयस्थान २१, २६, २८, २९, ३०, ३१ और सत्तास्थान ६२, ६०,८८,८४, ८२ होते हैं । पज्जत्तासण्णीसु वि बंधा तेवीसमाइ तीसंता । तेसिं चिय संतुदया सरिसा वियलिंदियाणं तु ॥२७७॥ 4 असण्णिपजत्ते बंधा २३।२५।२।२८।२६।३०। उदया २०२६।२८।२६।३०।३१। संता १२1801८11८४८२ । भसंज्ञिपंचेन्द्रियपर्याप्तकेषु बन्धाः त्रयोविंशत्यादित्रिंशदन्ताः नामप्रकृतिबन्धस्थानानि त्रयोविंशतिकरञ्चविंशतिक-पड़विंशतिकाष्टाविंशतिक-नवविंशतिक-त्रिंशकानि षड़ भवन्ति । तेषां विकलेन्द्रियाणां सदृशाणि सत्त्वोदयस्थानानि भवन्ति ॥२७७॥ असंज्ञिपंचेन्द्रियपर्याप्तके जीवप्तमासे बन्धाः २३।२५।२६।२८।२६॥३० । उदयाः २१।२६।२८।२६। ३०॥३१ । सत्त्वानि १२00८1८४८२ । ___पर्याप्त असंज्ञी जीवोंमें तेईसप्रकृतिकको आदि लेकर तीसप्रकृतिक पर्यन्तके छह बन्धस्थान होते हैं। तथा उनके उदयस्थान और सत्तास्थान विकलेन्द्रियोंके सदृश ही जानना चाहिए ॥२७७।। __ असंज्ञी पर्याप्तकोंमें बन्धस्थान २३, २५, २६, २८, २६, ३०; उदयस्थान २१, २६, २८, २६, ३०, ३१ और सत्तास्थान ६२, ६०,८८,८४, ८२ होते हैं । 1. सं० पञ्चसं० ५, ३०१-३०२। 2. ५, २३ इत्यादिगद्यभागः (पृ० १६५)। 3. ५. ३०३ । 4. ५, 'बन्धाः २३' इत्यादिगद्यभागः (पृ० १६६)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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