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________________ सप्ततिका उ. बं० १ १ आद्यौ द्वौ भनौ उ० १ . अयोगकेवलिनि आधौ द्वौ भनौ बन्धेन विना विचरमसमयेऽपि सं० १०० . . तस्यैवायोगिचरमसमये । इति सर्वे वेद्यस्य द्वाषष्टिविकल्पा भवन्ति १२ । इति जीवसमासेषु वेदनीयस्य विकल्पाः समासाः । चौदह जीवसमासोंमेंसे प्रत्येक जीवसमासमें वेदनीयकर्मके त्रिसंयोगी प्रथम चार-चार भंग होते हैं। चौदहवें जीवसमासके अन्तर्गत केबलीके छह भंग होते हैं । इस प्रकार सर्व मिलकर वेदनीयकर्मके बासठ भंग हो जाते हैं ॥२५७।।। भावार्थ-इसी सप्ततिकाप्रकरणके प्रारम्भमें गाथाङ्क १९-२० का अर्थ करते हुए जो वेदनीयकर्मके आठ भंग बतलाये गये हैं, उनमें से प्रारम्भके चार भंग प्रत्येक जीवसमासमें पाये जाते हैं, अतः चौदह जीवसमासोंको चारसे गुणित करने पर छप्पन भंग हो जाते हैं । तथा केवलीके पूर्वोक्त आठ भंगोंमेंसे छह भंग पाये जाते हैं। इस प्रकार दोनों मिलकर (५६+६=६२) बासठ भंग होते हैं। इसी अर्थका भाष्यकारने अंकसंदृष्टि द्वारा इस प्रकार स्पष्टीकरण किया है-- बंध १ १ ० ० चौदह जीवसमासोंमेंसे प्रत्येकमें ये चार भंग होते हैं-उद० १ ० १ ० स० १० १० १ ११० यहाँ पर (१) एक अंकसे सातावेदनीय और (०) शून्यसे असाता वेदनीयका संकेत किया गया है। सयोगिकेवलीमें प्रथमके ये दो भंग १ . होते हैं । अयोगिकेवलीमें भी ये ही दो भङ्ग ११० १०॥ पाये जाते हैं। किन्तु उनके द्विचरम समयमें वेदनीयकर्मके बन्धका अभाव हो जाता है, अतएव बन्धके विना ये दो भङ्ग होते हैं। उन्हीं अयोगिकेवलीके चरम समयमें ये दो भङ्ग पाये जाते है । इस प्रकार वेदनीयकर्मके सर्व भङ्ग ६२ जानना चाहिये। इस प्रकार जीवसमासोंमें वेदनीयकर्मके बन्धादिस्थानोंका निरूपण किया। अब भाष्यगाथाकार चौदह जीवसमासोंमें आयुकर्मके भंगोंका निरूपण करते हैं 'एयार जीवठाणे पणवण्णा चेव होंति भंगा य । पजत्तासण्णीसु य णव दस सण्णी अपजत्ते ॥२५८।। सण्णी पज्जत्तस्स य अट्ठावीसा हवंति आउस्स ।। तिगधियसयं तु सव्वे केवलिभंगेण संजु ॥२५॥ सुर-णिरएसु पंच य तिरिय-मणुएसु हवंति णव भंगा। बंधते बंधेसु वि चउसु वि आउस्स कमसो दु॥२६०॥ ५।९।९।५। 1. सं० पञ्चसं० ५, २८२ । 2. ५, २८३ । 3. ५, २८४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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