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________________ सप्ततिका ४०१ सर्व मीलिता भङ्गाः१३ । कथम्? दर्शनावरणस्य बन्धभङ्गास्त्रयः ३ । उदयभङ्गाः सप्त ७। सत्वभङ्गास्त्रयः ३। एवं विसदृशभङ्गास्त्रयोदश १३॥ ૩૦ જાપ જાપ જાપ જાપ જાપ જાપ જાપ इति जीवसमासेषु दर्शनावरणस्य विकल्पाः समाप्ताः । प्रारम्भके तेरह जीव-समासोंमें दर्शनावरणकर्मके नौ प्रकृतिक बन्धस्थान, चार अथवा पाँच प्रकृतिक उदयस्थान और नौ प्रकृतिक सत्तास्थानरूप दो भंग होते हैं। एक चौदहवें संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक नामक जीवसमासमें तेरह विकल्प होते हैं । वेदनीय, आयु और गोत्रकमसम्बन्धी स्थानोंके भंगोंका स्वयं विभाग करना चाहिए। तदनन्तर क्रम-प्राप्त मोहनीयकर्मके स्थानसम्बन्धी भंगोंका मैं वर्णन करूंगा ।।२५५।। ___आदिके तेरह जीबसमासोंमें दर्शनावरणकर्मके नौप्रकृतिक बन्धस्थानमें चारप्रकृतिक उदयस्थान और नौप्रकृतिक सत्तास्थान; तथा पाँच प्रकृतिक उदयस्थान और नौप्रकृतिक सत्तास्थान ऐसे दो भंग होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक नामक जीवसमासमें तेरह भंग किस प्रकारसे संभव हैं ? इस शंकाका समाधान करते हैं-मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंके नौप्रकृतिक बन्धस्थान, चारप्रकृतिक उदयस्थान और नौप्रकृतिक सत्तास्थान; तथा नौप्रकृतिक बन्धस्थान, पाँच प्रकृतिक उदयस्थान और नौप्रकृतिक सत्तास्थान; ये दो भंग होते हैं । तीसरे मिश्रगुणस्थानको आदि लेकर अपूर्वकरण नामक आठवें गुणस्थानके सात भागोंमेंसे दिके प्रथम भाग-पर्यन्त छहप्रकृतिक बन्धस्थान, चारप्रकृतिक उदयस्थान, नौप्रकृतिक सत्तास्थान; तथा छहप्रकृतिक बन्धस्थान, पाँचप्रकृतिक उदयस्थान और नौप्रकृतिक सत्तास्थान; ये दो भंग होते हैं। उपशामक और क्षपक अपूर्वकरणके शेष छह भागोंमें, तथा उपशामक अनिवृत्तिमें, उपशामक सूक्ष्म साम्परायमें; एवं क्षपकश्रेणी-सम्बन्धी अनिवृत्तिकरणके असंख्यातवें भागपर्यन्त चारप्रकृतिक बन्धस्थान, चारप्रकृतिक उदयस्थान, नौप्रकृतिक सत्त्वस्थान, तथा चारप्रकृतिक बन्धस्थान, पाँचप्रकृतिक उदयस्थान, नौप्रकृतिक सत्तास्थान, ये दो भंग होते हैं । क्षपक अनिवृत्तिकरणके शेष संख्यात भागमें और क्षपक सूक्ष्मसाम्परायमें चारप्रकृतिक बन्धस्थान, चारप्रकृतिक उदयस्थान, छहप्रकृतिक सत्तास्थान, तथा चार प्रकृतिक बन्धस्थान, पाँचप्रकृतिक उदयस्थान और पाँचप्रकृतिक सत्तास्थान; ये दो भंग होते हैं। दशवें गुणस्थानमें दर्शनावरणकी बन्धव्युच्छित्ति होजानेसे उपशान्तमोहमें बन्धस्थान कोई नहीं है, उदयस्थान चारप्रकृतिक, सत्तास्थान नौप्रकृतिक; तथा उदयस्थान पाँचप्रकृतिक और सत्तास्थान नौप्रकृतिक; ये दो भंग होते हैं। क्षीणमोहमें द्विचरम समय तक चारप्रकृतिक उदयस्थान, छहप्रकृतिक सत्तास्थान; तथा पाँचप्रकृतिक उदयस्थान और छह प्रकृतिक सत्तास्थान ये दो भंग होते हैं। क्षीणमोहके चरम समयमें चारप्रकृतिक उदयस्थान और चारप्रकृतिक सत्तास्थान ये रूप एक भंग होता है। इस प्रकार सब मिला करके संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवसमासमें तेरह भंग होते हैं । इन सबकी अंकसंदृष्टियाँ मूलमें दी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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