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पञ्चसंग्रह
और तीर्थङ्करप्रकृति । इस उदयस्थानका जघन्यकाल वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्ट काल देशोन (अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्षसे कम) पूर्वकोर्ट। वर्षप्रमाण है ॥१७६-१७।।
विसेस विसेसमणुएसु ३३ । एत्थ जहणा वासपुधत्तं, उक्कस्सा अंतोमुदुत्त अधिया अटवासूणा पुवकोडी । भंगो ।
[तीर्थकरप्रकृत्युदयविशिष्टविशेषमनुष्येषु एकत्रिंशत्कमुदयस्थानम् ३१ । अत्रोत्कृष्टा स्थितिरन्तम् - हूर्त्ताधिकगर्भाद्यष्टवर्षहीना पूर्वकोटी । जघन्या वर्षपृथक्त्वम् । भङ्ग एकः १।]
तीर्थकर प्रकृतिके उदयसे विशिष्ट विशेष मनुष्यों में यह इकतीसप्रकृतिक उदयस्थान होता है। इस उदयस्थानका जघन्यकाल वर्षपृथक्त्व है और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्तसे अधिक आठ वर्षसे कम एक पूर्वकोटी वर्षप्रमाण है । यहाँ पर भङ्ग एक ही है। अब नौप्रकृतिक उदयस्थानका निरूपण करते हैं
णवं अजोईठाणं पंचिंदिय सुभग तस य पायरयं । पज्जत्तय मणुसगई आएज्ज जसं च तित्थयरं ॥१७६॥
! भंगो । [..........
................॥१७॥] मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशःकीर्ति और तीर्थङ्कर, इन नौ प्रकृतियोंवाला उदयस्थान अयोगि तीर्थङ्करके होता है ॥१७६। अब आठप्रकृतिक उदयस्थानका निरूपण करते हैं--
तित्थयरं वज्जित्ता ताओ चेव हवंति अट्ठ पयडीओ। सव्वे केवलिभंगा तिण्णेव य होंति णायव्वा ॥१८०॥
। भंगो । सब्वे केवलिभंगा ३।
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.................. ॥१८॥] नौ प्रकृतिक उदयस्थानमेंसे तीर्थङ्करप्रकृतिको छोड़कर शेष जो पूर्वोक्त आठ प्रकृतियाँ अवशिष्ट रहती हैं, उन आठ प्रकृतियोंवाला उदयस्थान सामान्य अयोगिकेवलीके होता है। यहाँ पर भी भङ्ग एक ही है। इस प्रकार केवलीके सर्व भङ्ग तीन ही होते हैं, ऐसा जानना चाहिए ॥१८॥ अब मनुष्यगति-सम्बन्धी उदयस्थानोंके सर्व भंगोंका निरूपण करते हैं
मणुयगइसव्वभंगा दो चेव सहस्सयं च छच्च सया । णव चेय समधिरेया णायव्वा होति णियमेण ॥१८॥
भंगा २६०६ । । एवं मणुयगइ समत्ता ।
1. सं. पञ्चसं० ५, 'अत्रोत्कृष्टा' इत्यादिगद्यांशः। (पृ० १७६)। 2.५, १६८। 3. ५, १६६ । १. सं० पञ्चसंग्रहादुद्धृतम् । (पृ. १७६)
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