SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिका ३५७ उच्छासनिःश्वासपर्याप्तिप्राप्तकेन्द्रियजीवस्य पूर्वोक्तषड्विंशतिके उच्छासनिःश्वासं प्रक्षिप्ते सप्तविशतिक नामप्रकृत्युदयस्थानं भवति । जीवितपर्यन्तमिदं ज्ञेयम् । अस्य भङ्गाश्चत्वारः ४ । उत्कृष्टा स्थितिविंशतिवर्णसहस्राणि २२००० किञ्चिन्न्यूना ॥१२०॥ एकेन्द्रियाणां सर्वे भङ्गा द्वात्रिंशत् ३२ । इसी प्रकार श्वासोच्छ्रासपर्याप्तिसे पर्याप्त जीवके उच्छ्रासप्रकृतिके मिला देनेपर सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँपर भी चार भंग होते हैं। इस प्रकार एकेन्द्रिय जीवके सर्व भंग बत्तीस होते हैं ॥१२०॥ एकेन्द्रियोंके २४ भंग पहले बतलाये जा चुके हैं। आतप-उद्योतके उदयवाले जीवोंके छब्बीसके उदयस्थानमें अपनरुक्त ४ भंग तथा सत्ताईसके उदयस्थानमें अपुनरुक्त ४ भंग इस प्रकार सर्व मिलकर एकेन्द्रियजीवोंके ३२ भंग हो जाते हैं। अव विकलेन्द्रिय जीवों में नामकर्मके उदयस्थानों का निरूपण करते हैं 'वियलिंदियसामण्णे उदयट्ठाणाणि होति छच्चेव । इगिवीसं छव्वीसं अट्ठावीसाइइगितीसं ॥१२१॥ २१।२६।२८।२६।३०।३१ सामान्येन विकलत्रयेषु द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियेषु एकविंशतिक २१ षडविंशतिकं २६ अष्टाविंशतिकं २८ एकोनत्रिंशत्कं २६ त्रिंशत्कं ३० एकत्रिंशत्कं ३१ चेति षट नामप्रकृत्युदयस्थानानि भवन्ति ॥१२॥ २१।२६।२८।२९।३०।३१ विकलेन्द्रिसामान्यमें इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक छह उदयस्थान होते हैं ॥१२१॥ इन उदयस्थानोंकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-२१, २६, २८, २९, ३०, ३१ । उज्जोयरहियवियले इगितीसूणाणि पंच ठाणाणि । उज्जोयसहियवियले अट्ठावीसूणगा पंच ॥१२२॥ उज्जोवुदयरहियवियले २१।२६।२८।२६।३०। उज्जोवुदयसहियवियले २१।२६।२६।३०।३१॥ उद्योतरहितविकलत्रयेषु एकत्रिंशत्कोनानि एकविंशतिक-षडविंशतिकाष्टाविंशतिक-नवविंशतिकत्रिंशत्कानि पञ्च नामोदयस्थानानि २१।२६।२८।२६।३० भवन्ति । उद्योतोदयसहितविकलत्रयेषु अष्टाविंशतिकोनानि एकविंशतिक-पड्विंशतिक-नवविंशतिक-त्रिंशत्कैकत्रिंशत्कानि पञ्चोदयस्थानानि । २१।२६।२६।३०।३१ इति विशेषः ॥१२२॥ उद्योतप्रकृतिके उदयसे रहित विकलेन्द्रियोंमें इकतीसप्रकृतिक उदयस्थानके विना शेष पाँच उदयस्थान होते हैं। तथा उद्योतप्रकृतिके उदयसे सहित विकलेन्द्रियोंमें अट्ठाईसप्रकृतिक उदयस्थानके विना शेष पाँच उदयस्थान होते हैं ॥१२२॥ उद्योतके उदयसे रहित विकलेन्द्रियोंमें २१, २६, २८, २९,३० ये पाँच उदयस्थान होते हैं । उद्योतके उदयसे सहित विकलेन्द्रियोंमें २१, २६, २६,३०,३१ ये पाँच उदयस्थान होते हैं। 1. सं० पञ्चसं० ५, १४१ । 2. ५, १४२ । 3. ५, 'निरुद्योते' इत्यादिगद्यभागः । (पृ० १७१)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy