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पञ्चसंग्रह
गुण मि० सा०
૨૨
गुणस्थानेषु मोहनीयस्य बन्धादिस्थानयन्त्रम्बंध० उदय० सत्त्व. बन्धस्था० इदयस्था०
सत्त्वस्थानानि १०,६,८,७
२८,२७,२६
२८ ६८,
२८,२४ ६,८,७,६ २८,२४,२३,२२,२१ ८,७,६,५ २८,२४,२३,२२,२१
२८,२४,२३,२२,२१ २८,२४,२३,२२,२१ उपशमश्रेण्यां क्षपकश्रेण्याम्
२८,२४,२१ २१ ५ २ ११ ५,४,३, २ २८,२४,२१ २१,१२,११,५,४,
३,२,१ २८,२४,२१ २८,२४,२१
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अप्र०
अपू० अनि०
०
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.
०
सू०
.
०
०
उप० क्षी०
०
.
अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थानमें मोहकर्मकी सभी प्रकृतियोंको सत्ता होती है। पुनः अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थानमेंसे सम्यक्त्वप्रकृतिकी उद्वेलना होनेपर सत्ताईसप्रकृतिक सत्तास्थान होता है। पुनः सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करनेपर सादिमिथ्यादृष्टिके अथवा अनादिमिथ्यादृष्टिके छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। पुनः अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थानोंमेंसे अनन्तानुबन्धी क्रोधादि चतुष्कके क्षपित अर्थात् विसंयोजित कर देनेपर चौबीसप्रकृतिक सत्तास्थान होता है। पुनः मिथ्यात्वके क्षय करनेपर तेईसप्रकृतिक सम्यन्मिथ्यात्वके क्षय करनेपर बाईसप्रकृतिक और सम्यक्त्वप्रकृतिके क्षय कर देनेपर इक्कोसप्रकृतिक सत्तास्थान होता है। तदनन्तर आठ मध्यमकषायोंके क्षय होनेपर तेरह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। पुनः नपुंसकवेदके क्षय होनेपर ब प्रकृतिक, स्त्रीवेदके क्षय होनेपर ग्यारहप्रकृतिक और हास्यादि छह प्रकृतियोंके क्षय होनेपर पाँच प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। पुनः पुरुषवेदके क्षय होनेपर चार प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। तदनन्तर संज्वलन क्रोधके क्षय होनेपर तीनप्रकृतिक, संज्वलनमानके क्षय होनेपर दोप्रक्रतिक और संज्वलन मायाके क्षय होनेपर एकप्रकृतिक सत्तास्थान होता है ॥३५-३६॥ इस प्रकार मोहकमके सर्व सत्तास्थानोंकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
२८, २७, २६, २४, २३, २२, २१, १३, १२, ११, ५, ४, ३, २, १ । अब मोहनीयकर्मके बन्धस्थानानों में उदयस्थानोंका निरूपण करते हैं-- [मूलगा०१५] 'बावीसादिसु पंचसु दसादि-उदया हवंति पंचेव ।
सेसे दु दोण्णि एर्ग एगेगमदो परं णेयं ॥३७॥ २२ २१ १७ १३ ६ अणियट्टिम्मि५३३१ सुहुमे, १० १ ८ ७६ २ २ १११ सुकुम
1. सं० पञ्चसं० ५, ४८। १. श्वे. सप्ततिकायां गाधेयं नोपलभ्यते। दिया।
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