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पञ्चसंग्रह
तिर्यगायके उदयमें और चारों आयुकर्मों के अबन्धकालमें, तथा बन्धकालमें क्रमशः तिर्यगायुकी सत्ता, और तिर्यगायुके साथ नरकादि चारों आयुकर्मोंमेंसे एक-एक आयुकी सत्ता, इस प्रकार दो आयुकमोंकी सत्ता पायी जाती है ॥२२॥
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विशेषार्थ–तिर्यग्गतिमें अबन्धकाल में तिर्यंचायुका उदय और तिर्यंचायुकी सत्ता, यह एक भंग होता है । बन्धकालमें १ नरकायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय और नरक तिर्यगायुकी सत्ता २ तिर्यगायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय और तिर्यञ्च तिर्यगायुकी सत्ता, ३ मनुष्यायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय और मनुष्य- तिर्यगायुकी सत्ता; तथा ४ देवायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय, और देव- तिर्यगायुकी सत्ता, ये चार भंग होते हैं । उपरतबन्धकालमें १ तिर्यगायुका उदय, और नरकतिर्यगायुकी सत्ता; २ तिर्यगायुका उदय और तिर्यञ्च तिर्यगायुकी सत्ता; ३ तिर्यगायुका उदय और मनुष्य- तिर्यगायुकी सत्ता; तथा तिर्यगायुका उदय और देव तिर्यगायुकी सत्ता; ये चार भंग होते हैं । इस प्रकार तिर्यग्गतिमें अबन्ध, बन्ध और उपरतबन्धकी अपेक्षा आयुकर्मके कुल नौ भङ्ग होते हैं ।
भङ्ग
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तिर्यगायुके उक्त भङ्गोंकी संदृष्टि इस प्रकार है
काल
बन्ध
भबन्धकाल
बन्धकाल
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उपरतबन्धकाल
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सत्त्वं १ भुज्यमान सत्त्वं च
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०
नरकायु
तिर्यगायु
मनुष्यायु
देवायु
०
०
अब मनुष्यायुके भंगोंका निरूपण करते हैं
०
1. सं० पञ्चसं ०५, २६ ।
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उदय
तिर्यगायु
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79
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39
33
33
""
माउस य उदए चउण्हमाऊणऽबंध बंधे य । मणुयाउयं च संतं मणुयाई दोण्णि संताणि ॥ २३ ॥
० १ ० २ ० ३ ० ४ ०
३
३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३
३ ३|१३|१ ३२ ३।२ ३/३ ३ ३ ३ ४ ३।४
सत्व
तिर्यगायु नरकायु, तिर्यगायु
तिर्यगायु, तिरंगा मनुष्यायु, तियंगायु देवायु, तिर्यगायु
मनुष्यायुष उदये चतुर्णां नरक- तिर्यग्मनुष्य देवायुषामत्रन्धके चतुर्णामायुषां बन्धके च मनुष्यायु:सत्त्वम् ३ । अन्यत्र मनुष्यायुरादिद्वयं सत्वं १ । तथाहि — उदयागतमनुष्यायुर्भुज्यमानः सन् ३ अबन्धे सति
०
तदेव भुज्यमानमेव सत्त्वम् । ३ प्रथमो भङ्गः । उदयागतमनुष्यायुर्भुज्यमानः सन् नरकायुर्बद्धा तदेव
३
तिर्यगाथु नरकायु
तिर्यगायु, तियंगायु
तिर्यगायु, मनुष्यायु
तिर्यगायु, देवायु
१
३ द्वितीयो भङ्गः २ । उदयागतमनुष्यायुर्भुज्यमानः अबन्धेऽग्रे नरकायु
३।१
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