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________________ पञ्चसंग्रह तिर्यगायके उदयमें और चारों आयुकर्मों के अबन्धकालमें, तथा बन्धकालमें क्रमशः तिर्यगायुकी सत्ता, और तिर्यगायुके साथ नरकादि चारों आयुकर्मोंमेंसे एक-एक आयुकी सत्ता, इस प्रकार दो आयुकमोंकी सत्ता पायी जाती है ॥२२॥ ३१२ विशेषार्थ–तिर्यग्गतिमें अबन्धकाल में तिर्यंचायुका उदय और तिर्यंचायुकी सत्ता, यह एक भंग होता है । बन्धकालमें १ नरकायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय और नरक तिर्यगायुकी सत्ता २ तिर्यगायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय और तिर्यञ्च तिर्यगायुकी सत्ता, ३ मनुष्यायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय और मनुष्य- तिर्यगायुकी सत्ता; तथा ४ देवायुका बन्ध, तिर्यगायुका उदय, और देव- तिर्यगायुकी सत्ता, ये चार भंग होते हैं । उपरतबन्धकालमें १ तिर्यगायुका उदय, और नरकतिर्यगायुकी सत्ता; २ तिर्यगायुका उदय और तिर्यञ्च तिर्यगायुकी सत्ता; ३ तिर्यगायुका उदय और मनुष्य- तिर्यगायुकी सत्ता; तथा तिर्यगायुका उदय और देव तिर्यगायुकी सत्ता; ये चार भंग होते हैं । इस प्रकार तिर्यग्गतिमें अबन्ध, बन्ध और उपरतबन्धकी अपेक्षा आयुकर्मके कुल नौ भङ्ग होते हैं । भङ्ग 9 २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ Jain Education International ६ तिर्यगायुके उक्त भङ्गोंकी संदृष्टि इस प्रकार है काल बन्ध भबन्धकाल बन्धकाल " 33 39 उपरतबन्धकाल 33 33 सत्त्वं १ भुज्यमान सत्त्वं च 33 ० नरकायु तिर्यगायु मनुष्यायु देवायु ० ० अब मनुष्यायुके भंगोंका निरूपण करते हैं ० 1. सं० पञ्चसं ०५, २६ । ० उदय तिर्यगायु "" 33 79 33 39 33 33 "" माउस य उदए चउण्हमाऊणऽबंध बंधे य । मणुयाउयं च संतं मणुयाई दोण्णि संताणि ॥ २३ ॥ ० १ ० २ ० ३ ० ४ ० ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३|१३|१ ३२ ३।२ ३/३ ३ ३ ३ ४ ३।४ सत्व तिर्यगायु नरकायु, तिर्यगायु तिर्यगायु, तिरंगा मनुष्यायु, तियंगायु देवायु, तिर्यगायु मनुष्यायुष उदये चतुर्णां नरक- तिर्यग्मनुष्य देवायुषामत्रन्धके चतुर्णामायुषां बन्धके च मनुष्यायु:सत्त्वम् ३ । अन्यत्र मनुष्यायुरादिद्वयं सत्वं १ । तथाहि — उदयागतमनुष्यायुर्भुज्यमानः सन् ३ अबन्धे सति ० तदेव भुज्यमानमेव सत्त्वम् । ३ प्रथमो भङ्गः । उदयागतमनुष्यायुर्भुज्यमानः सन् नरकायुर्बद्धा तदेव ३ तिर्यगाथु नरकायु तिर्यगायु, तियंगायु तिर्यगायु, मनुष्यायु तिर्यगायु, देवायु १ ३ द्वितीयो भङ्गः २ । उदयागतमनुष्यायुर्भुज्यमानः अबन्धेऽग्रे नरकायु ३।१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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