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________________ पञ्चसंग्रह नरकायुष एकाङ्कः १ संज्ञा । तिर्यगायुषः द्विकाङ्कसंज्ञा २। मनुष्यायुषत्रितयाङ्कसंज्ञा ३ । देवायुषश्चतुरक्संज्ञा ४। अबन्धस्य शून्यमेव संज्ञा ०। उपरते शून्यम् । तथा प्रकारान्तरेण नरकगत्यां नरकायुषः पञ्च भङ्गा एते बं० . ति . म . उ. णि णि णि णि णि स० २ २ ३ ३ तथाऽऽयुषो बन्धः गोम्मट्टसारे प्रोक्तःसुरणिरया णरतिरियं छम्मासावसिट्टगे सगाउस्स । णरतिरिया सव्वा तिभागसेसम्मि उक्तस्सं ॥२॥ भोगभुमा देवायुं छम्मावसिट्टगे य बंधंति ।। इगिविगला णरतिरियं तेउदुगा सत्तगा तिरियं ॥३॥ परभवायुः स्वभुज्यमानायुष्युत्कृष्टेन पण्मासेऽवशिष्टे देव-नारकाः नारं तैरश्चं चायुर्बध्नन्ति, तद्वन्धयोग्याः स्यरित्यर्थः। नर-तिर्यञ्चस्त्रिभागेऽवशिष्ट चत्वारि आयंषि बध्नन्ति । भोगभूमिजाः षण्मासेऽवशिष्ट दैवमायुर्बध्नन्ति । एक-विकलेन्द्रियाः नारं तैरश्चं चायुर्बध्नन्ति । तेजोवायवः सप्तमपृथ्वीजाश्च तैरश्चमेवायुबंध्नन्ति । नारकादीनामेकं स्व-स्वगत्यायुरेवोदेति । सत्त्वं परभवायुबन्धे उदयागतेन समं द्वे स्तः । अबद्धायुष्ये सत्त्वमेकमुदयागतमेव १ ॥२१॥ नवीन आयुके अबन्धकालमें नरकायुका उदय और नरकायुका सत्त्वरूप एक भंग होता है। तिर्यगायु या मनुष्यायुके बन्ध हो जाने पर नरकायुका उदय और नरकायुके सत्त्वके साथ तिर्यगायु और मनुष्यायुका सत्त्व पाया जाता है ॥२१॥ विशेषार्थ-आयुकर्म की उसके बन्ध-अबन्धकी अपेक्षा तीन दशाएँ होती हैं-१ परभवसम्बन्धी आयुके बँधनेसे पूर्वकी दशा, २ परभवसम्बन्धी आयुके बन्धकालकी दशा और ३ परभवसम्बन्धी आयुके बँध जानेके उत्तरकालकी दशा। इन तीनों दशाओंको क्रमसे अबन्धकाल, बन्धकाल और उपरतबन्धकाल कहते हैं । इनमेंसे नारकियोंके अबन्धकालमें नरकायुका उदय और नरकायुकी सत्तारूप एक भंग होता है । बन्धकालमें तिर्यगायुका बन्ध, नरकायुका उदय और तिर्यंच-नरकायकी सत्ता, तथा मनुष्यायुका बन्ध, नरकायुका उदय और मनुष मनुष्य-नरकायुकी सत्ता ये दो भंग होते हैं ! उपरतबन्धकालमें नरकायुका उदय और नरक-तिर्यगायुकी सत्ता, तथा नरकायुका उदय और नरक-मनुष्यायुकी सत्ता ये दो भंग होते हैं। इस प्रकार नरकगतिमें आयुके अबन्ध, बन्ध और उपरतबन्धकी अपेक्षा कुल पाँच भंग होते हैं। मूलमें जो अंकसंदृष्टि दी है उसमें एकके अंकसे नरकायुका दोके अंकसे तिर्यगायुका तीनके अंकसे मनुष्यायुका और चारके अंकसे देवायुका संकेत किया गया है। नरकायुके उक्त भङ्गोंकी संदृष्टि इस प्रकार हैभंग काल उदय सत्त्व अबन्धकाल . नरकायु नरकायु बन्धकाल तिर्यगायु नरकाथु नरकायु, तिर्यगायु . मनुष्यायु नरकायु मनुष्यायु उपरतबन्धकाल . नरकायु , तिर्यगायु नरकायु मनुष्यायु बन्ध For m " १. गो० क० ६३६-६४० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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