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________________ शतक २३७ . प्र० अ० अ० अ० सू० उ० सी० स० अ० संयममार्गणायां-- ६३ ५६ ५८ . २२ १७ १ १ १ ० २ ६ ७ ४२ ४८ ६४ ६४ ११६ १२० मि. सा. मि० अ० १६ २५० १० असंयमस्य-- ११७ ११७४४४१ प्र० अ० अ० अ० ८० देशसंयतस्य-- ६७ सामायिक-च्छेदोपस्थापनयोः-- ६३ ५६ ५८ २२ ५३ अप्र० परिहारविशुद्ध-- WWMo सूचमसाम्पराये-- १६ १७ १०३ उ० क्षी० स० अ० यथाख्याते-- दर्शनमार्गणायां चक्षुरचक्षुर्दर्शनयोर्बन्धयोग्यं १२० । मिथ्यादृष्ट्यादि-क्षीणकषायान्तं गुणस्थानद्वादशोक्तवत् । अवधिदर्शने अवधिज्ञानवत् बन्धयोग्याः ७६ । गुणस्थानान्यसंयतादीनि नव ६ ! केवलदर्शने सयोगायोगगुणस्थानद्वयम् २ ॥३७१॥ ज्ञानमार्गणाकी अपेक्षा आठों ज्ञानोंमें, संयममार्गणाकी अपेक्षा सातों स्थानोंमें तथा दर्शनमार्गणाकी अपेक्षा चारों दर्शनोंमें मिथ्यात्वगुणस्थानको आदि लेकर यथासंभव अयोगिकेवली गुणस्थान तक ओघके समान बन्धादि जानना चाहिए ॥३७१॥ विशेषार्थ-कुमति, कुश्रुत और विभंगा; इन तीनों कुज्ञानोंमें आदिके दो गुणस्थान होते हैं। मत्यादि चार सज्ञानोंमें चौथेसे लगाकर बारहवें तकके नौ गुणस्थान होते हैं। केवलज्ञानमें अन्तिम दो गुणस्थान होते हैं। सो विवक्षित ज्ञानमाले जीवोंके तत्तत्संभवगुणस्थानोंके समान बन्धरचना जानना चाहिए । संयममार्गणाको अपेक्षा ५ संयमके, १ देशसंयमका और १ असंयम का ऐसे सात स्थान होते हैं। सामायिक और छेदोपस्थापना संयममें छठेसे लगाकर नवमें गुणस्थान तकके चार, परिहारविशुद्धिसंयममें छट्ठा और सातवाँ, ये दोः सूक्ष्मसाम्परायमें एक दशवाँ और यथाख्यातसंयममें अन्तिम चार गुणस्थान होते हैं। देशसंयममें पाँचवाँ और असंयममें आदिके चार गुणस्थान होते हैं। इन सातों संयमस्थानोंमें उपर्युक्त गुणस्थानोंके समान बन्धरचना जानना चाहिए । दर्शनमार्गणाकी अपेक्षा चार स्थान हैं सो चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शनमें आदिके १२ गुणस्थान होते हैं। अवधिदर्शनमें चौथेसे लेकर बारहवें तकके नौ गुणस्थान होते हैं। तथा केवलदर्शनमें अन्तिम दो गुणस्थान होते हैं। अतः विवक्षित दर्शनवाले जीवोंकी बन्धरचना उनमें संभव गुणस्थानोंके समान जानना चाहिए। अब लेश्यामार्गणाकी अपेक्षा बन्धादिका वर्णन करते हैं किण्हाईतिसु णेया आहारदुगूण ओघबंधाओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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