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________________ तिप्रकृतिभिरूनाः तीर्थङ्करत्व- सुरचतुष्केन युताश्च ता एव प्रकृतीरौदारिकमिश्रकाययोगिनोऽविरतसम्यग्दृष्टयो ७५ बध्नन्ति ॥३६०-३६२३॥ औदारिकमिश्रकाययोगिनां रचना- स० 9 9 ११३ मि० Jain Education International शतक ॐ० ७४ ७५ ३६ औदारिक मिश्रकाययोगमें नरकद्विक, आहारकयुगल, नरकायु और देवायुके विना बन्धयोग्य शेष ११४ प्रकृतियाँ जानना चाहिए | उनमें से तीर्थङ्कर और सुरचतुष्क ( देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक- अङ्गोपांग ) इन पाँचके विना मिथ्यादृष्टि १०६ प्रकृतियों का बन्ध करते हैं । औदारिकमिश्रकाययोगी सासादत्तसम्यग्दृष्टि नरकायु और नरकद्विकको छोड़कर मिथ्यात्वमें विच्छिन्न होनेवाली १३ प्रकृतियोंके विना तथा तिर्यगायु और मनुष्यायुके विना शेष ६४ प्रकृतियोंको बाँधते हैं । औदारिकमिश्रकाययोगी अविरतसम्यग्दृष्टि तिर्यगायुको छोड़कर सासादनमें विच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियोंके विना तथा तीर्थङ्कर और सुरचतुष्कसहित ७५ प्रकृतियोंको बाँधते हैं ।। ३६०-३६२३॥ ( देखो संदृष्टि सं० २५ ) वेउव्वे सुरभंगो सुरपयडी तिरिय णराऊणा ॥ ३६३ ॥ ॥१०२॥ १५ १०६ ५ सा० २४ ६४ २० तम्मिस्से तित्थयरूणाओ बंधंति ताउ मिच्छा दु । ॥१०५॥ इगिजाइथावरादव हुंडा संपत्तमिच्छतॄणा || ३६४॥ सास सम्माट्ठी ताओ बंधंति पयडीओ | 121 तिरिया उयं च मोत् सासणवोच्छिण्ण बंधवोच्छिण्णा ॥ ३६५॥ बंधपयडीहिं रहिया तित्थयरजुआ ताउ बंधंति अजई दु । ॥७६॥ वैक्रियिककाययोगे सुरभङ्गः देवगत्युक्तवत् सूक्ष्मत्रय- विकलत्रय-नरकद्विक-नरकायुः-सुरचतुष्कसुरायुराहारकद्वयोनाः षोडशानामबन्धाद्व न्धयोग्यप्रकृतयः १०४ ॥ देवसम्बन्धिवै क्रियिकानां रचना- ७ मि० सा० मि० २५ ६६ - ० २३३ १०३ 9 ३४ ३२ तन्मिश्रे वैक्रियिक [ मिश्र - ] काययोगे तिर्यग्मनुष्यायुष ऊना देवगत्युक्तप्रकृतयो बन्धयोग्याः १०२ भवन्ति । तीर्थकरत्वोनास्त एव १०१ प्रकृती वै क्रियिकमिश्रयोगिनो मिथ्यादृष्टयो बन्नन्ति । एकेन्द्रियजातिः १ स्थावरं १ भातपः १ हुण्डकं १ असम्प्राप्तसृपाटिकासं हननं १ मिध्यात्वं १ षण्ढवेदः १ चेति सप्तभिः प्रकृतिभिरूनास्त एव प्रकृतीः १४ सासादनस्था वैक्रियिकमिश्रकाययोगिनो बन्धन्ति । तिर्यगायुष्कं ३० ७० भ० १० ७२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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