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________________ शतक १११ एक प्रकृतिके बन्ध कम होते जानेसे चार, तीन, दो और एक प्रकृतिका भी बन्ध होता है। इस प्रकार सर्व मिलाकर मोहनीय कर्मके दश बन्धस्थान होते हैं ।।२५०॥ अप्पमत्तापुव्वाणं । पत्थायारो जहा भंगा १ अणियट्टियम्मि ५।४।३।२।। पत्थयारो अप्रमत्तापूर्वकरणयोः । । संज्वलन ४ भयद्विकेषु २ वेद १ हास्यद्विके २ च मिलिते नवकम् है । तद्भङ्गः एकः । अत्र हास्यद्वक-भयद्विके व्युच्छिन्ने अनिवृत्ति___१ ० करणस्य पञ्चसु भागेषु ५४ ३ २ १ प्रस्तार:--. २ प्रस्तारो यथा- चतुःसंज्वलनकषायेषु पुंवेदे मिलिते पञ्चकम् । तद्भङ्गः-- । अत्र प्रथमे भागे पुंवेदो व्युच्छिन्नः । द्वितीये भागे कषायचतुष्कम् । तद्भगः-- । अत्र क्रोधो व्युच्छिन्नः । तृतीयभागे कषायत्रयम् । भङ्ग एकः ३ । अत्र मानो व्युच्छिन्नः । चतुर्थभागे कषायद्वयम् । भङ्ग एकः । अत्र माया ब्युच्छिन्ना । पञ्चमभागे लोभः । एकभङ्गः ।। __ अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरणमें नौ प्रकृतियोंका बन्ध होता है। इनकी प्रस्ताररचना मूलमें दी है। यहाँ पर भंग एक-एक ही होता है। अनिवृत्तिकरणके पाँचों भागोंमें क्रमशः पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिका बन्ध होता है । इनकी प्रस्ताररचना मूलमें दी है। अब मोहनीय कर्मके सर्व बन्धस्थानोंके भंगोंका निरूपण करते हैं 'छव्वाबीसे चउ इगिवीसे सत्तरस तेर दो दो दु । णवबंधए वि एवं एगेगमदो परं भंगा ॥२५॥ ६।१२।२।२।११।१११॥ उक्तभङ्गसंख्यामाह--मिथ्यादृष्टयानिवृत्तिकरणान्तेषु उक्तमोहनीयबन्धस्थानेषु भङ्गाः--द्वाविंशतिके षट् भङ्गाः ६ । एकविंशतिके चत्वारो भङ्गाः ४ । सप्तदशके द्विवारं द्वौ द्वौ भङ्गौ २।२। त्रयोदशके नवकबन्धेऽपि प्रमत्तपर्यन्तं द्वौ द्वौ भङ्गौ २१२ अन्त उपरि सर्वस्थानेषु एकैको भङ्गः ॥२५॥ मि. सा. मि० अ० दे० प्रम० अप्र० अपू० अनि० अनि. अनि० भनि० अनि. बाईस प्रकृतिक बन्धस्थानमें छह भंग होते हैं, इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थानमें चार भंग होते हैं । सत्तरह, तेरह और नौ प्रकृतिक बन्धस्थानमें दो-दो भंग होते हैं । इससे परवर्ती पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रक्रतिक बन्धस्थानों में एक-एक ही भंग होता है॥२५१॥ इन भंगोंको अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-६।४।२।२।२।२।१।१।१।१।१। ___ 1. सं० पञ्चसं०४, १२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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