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________________ शतक । तथाहि — प्रमत्तोऽप्रमत्तो सप्तकर्माणि बनातीत्यर्थः । उपर्युपरि गुणस्थानारोहणे भल्पतरबन्धास्त्रयः are कर्माणि न अपूर्वकरणेऽनिवृत्तिकरणे च चटितः सन् आयुर्विना सप्त कर्माणि बध्नाति ७ । तत्र कर्मसप्तकं बध्नन् सूक्ष्मसाम्पराये चटितः सन् आयुर्मोहद्वयं विना षट् कर्माणि बध्नाति ६ । सूक्ष्मसाम्परायस्थः कर्मपट्कं बध्नन् उपशान्तादिकं प्राप्तः सन् एकं सातं कर्म बनातीत्यर्थः । स्वस्थानेऽवस्थितबन्धाश्चत्वारो भवन्ति | अल्पं बध्वा बहु बनतः भुजाकारो बन्धः १ । बहु बध्वाऽल्पं बनतोऽल्पतरबन्धः स्यात् २। अल्पं बहु वा बध्वाऽनन्तरसमये तावदेव बनतोऽवस्थितबन्धः ३ । किमप्यऽत्रध्वा पुनर्ब्रझतोऽवक्तव्यबन्धः ४ । किमपि बध्वाऽवक्तव्यबन्धनादयं भेदो मूलप्रकृतिबन्धस्थानेष्वस्ति ॥२४१॥ ८ ७ ६ १ ८७६१ मूल प्रकृतियोंके प्रकृतिस्थान चार हैं, भुजाकार तीन हैं, अल्पतर तीन हैं, और अवस्थित - बन्ध चार जानना चाहिए ॥२४१|| बंधाणाणि ८७६११ भुजयारा ८६ ๆ ७ ६ १ अवट्टिया अप्पयरा बन्धस्थानानि ८|७|६|१| भुजाकाराः Jain Education International ७ १ ६ ६ ७ ८ ८७.६ ७६१ अल्पतराः ८ ७ ६ १ ८ ७ ६ 9 १ ६ ७ ६७ ८ For Private Personal Use Only ६ ७ ८ १ ६ ७ चार प्रकृतिबन्धस्थान इस प्रकार हैं--८|७|६|१| तीन भुजाकार बन्ध इस प्रकार हैं २|६|७| ६७ मा अवस्थिताः ८७६ ७७६।१। १८५ तीन अल्पतर बन्ध इस प्रकार चार अवस्थितबन्ध इस प्रकार हैं 1 विशेषार्थ- - उक्त अर्थका स्पष्टीकरण इस प्रकार है- मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर अप्रमत्तगुणस्थान तकके जीव आठों ही कर्मोंका बन्ध करते हैं । अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण गुणस्थान वाले जीव आयुके विना शेष सात कर्मोंका बन्ध करते हैं । सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानवर्ती जीव मोह और आयुके बिना छह कर्मोंका बन्ध करते हैं । उपशान्तकषायादि तीन गुणस्थानवर्ती जीव एक सातावेदनीय कर्मका बन्ध करते हैं । इस प्रकार आठ, सात, छह और एक प्रकृतिरूप चार प्रकृतिबन्धस्थान होते हैं । इनके तीन भुजाकारबन्धों का विवरण इस प्रकार है-उपशान्तकषायसंयत एक सातावेदनीयकर्मका बन्ध करके उतरता हुआ जब दशवें गुणस्थानमें आता है, तब वहाँ वह मोह और आयुके विना शेष छह कर्मोंका बन्ध करने लगता है । यह एक भुजाकारबन्ध हुआ। पुनः दशवें गुणस्थानसे भी नीचे आकर जब नवें और आठवें गुणस्थानको प्राप्त होता है, तब वहाँ पर आयुकर्मके विना शेष सात कर्मोंका बन्ध करने लगता है, यह छह से सात कर्मके बाँधने रूप दूसरा भुजाकारबन्ध हुआ । पुनः वही जीव और भी नीचे के गुणस्थानों में उतरकर आठों कर्मोका बन्ध करने लगता है । यह सातसे आठ कर्मके बाँधनेरूप तीसरा भुजाकार बन्ध हुआ । इसी प्रकार ऊपर के गुणस्थानों में चढ़ने पर तीन अल्पतर बन्धस्थान होते हैं-जैसे आठ कर्मका बन्ध करनेवाला कोई प्रमत्त या अप्रमत्तलंयत अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में चढ़कर आयुके विना सात कर्मोंका ही बन्ध करने लगता है । यह प्रथम अल्पतर बन्धस्थान हुआ। वही जीव दश गुणस्थान में पहुँच कर मोह और आयुके विना छह कर्मोका बन्ध करने २४ ८७|६|१| ८|६|१| 9 ८ ७ ८७ ६ १ 1 www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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