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पञ्चसंग्रह
इंदिय चउरो काया कोहाई तिणि एयवेदो य । हस्साइदुयं एवं भयजुयलं चउदसं जोगो ॥१७३।।
१४३।।।२।२।१ मिलिया १४ । १।४।३।१।२।२।१ एकीकृताः १४ प्रत्ययाः । एतेषां भंगाः ६।१५।४।३।२।१० अन्योन्यगुणिताः २१६०० ॥७३॥
अथवा इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये चौदह वन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१७३।।
इनकी अङ्कसंदृष्टि इस प्रकार है-१+४+३+१+२+२+१=१४ । एदेसिं च भंगा- ६.१।४।३।२।.. एदे अण्णोण्णगुणिदा= १४४०
६।६।४।३।२।२।१० एदे अण्णोण्णगुणिदा- १७२८०
६।१५।४।३।२।१० एदे अण्णोण्णगुणिदा- २१६०० एए सव्वे मिलिया
= ४०३२० एते सर्वे त्रयो राशयो मीलिता: ४०३२० चतुर्दशप्रत्ययानां विकल्पाः स्युः । मिश्रगुणस्थानमें चौदह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी तीनों प्रकारोंके भंग इस प्रकार हैं-- (१) ६।१।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर १४४० भंग होते हैं। (२) ६।६।४।३।२।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर १७२८ भंग होते हैं । (३) ६।१५।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर २१६०० भंग होते हैं। उक्त सर्व भंगोंका जोड़--
४०३२७ होता है। सम्यग्मिथ्यादृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले पन्द्रह बन्ध
का० भ० प्रत्यय-सम्बन्धी भंगोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी रचना इस प्रकार है--
इंदिय छक्क य काया कोहाई तिणि एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयदुय एयं च पण्णरस जोगो ॥१७४॥
१।६।३।१।२।१।१ एदे मिलिया १५ । १।६।३।१।२।१।१ एकीकृताः १५ प्रत्ययाः भंगाः ६।४।३।२।२।१० गुणिताः २८८० ॥१४॥
अथवा मिश्रगुणस्थानमें इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक; ये पन्द्रह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१७४ ॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+६+३+१+२+१+१=१५ ।
इंदिय पंचय काया कोहाई तिणि एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयजुयलं पण्णरस जोगो ॥१७॥
१।५।३।१।२।२।१ एदे मिलिया १५ । १०५।३।१।२।२।१ एकीकृताः १५ प्रत्ययाः । एतेषां भंगा: ६।६४।३।२।१० परस्परेण गुणिता: ८६४० ॥७७५॥
अथवा इन्द्रिय एक, काय पाँच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक; ये पन्द्रह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१७॥
इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+५+३+१+२+२+१=१५ ।
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