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________________ १४२ पञ्चसंग्रह इंदियमेओ काओ कोहाई तिण्णि एयवेदो य । हस्सादिदुयं एवं भयदुय एयं च एयजोगो य ॥१६१॥ १११।३।१२।११ एदे मिलिया १० । ११।३।१।२।। एकीकृताः १० प्रत्यया । एतेषां भङ्गाः ६।६।४।३।२।२।१० । परस्परेण गुणिताः १७२८० ॥१६॥ अथवा इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक; ये दशबन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१६।। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है--१+१+३+१+२+१+१=१०। एदेसि च भंगा- ६।१५।४।३।२।१० एए अण्णोण्णगुणिया=२१६०० ६।६।४।३।२।२।१० =१७२८० एदे मेलिए =३८८८० सर्वे मीलिता:-- ३८८८०। मिश्र गुणस्थानमें दशबन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी दोनों प्रकारोंके भङ्ग इस प्रकार हैं(१).६।१५।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करने पर २१६०० भङ्ग होते हैं । (२) ६६।४३२।१० इनका परस्पर गुणा करने पर १७२८० भङ्ग होते हैं। दश बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका जोड़- ३८८८० होता है। सम्यग्मिथ्यादृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले ग्यारह बन्ध- का० भ० प्रत्यय-सम्बन्धी भंगोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी रचना : इस प्रकार है इंदिय तिणि य काया कोहाई तिण्णि एयवेदो य । हस्सादिजुयलमेयं जोगो एकार। पच्चया मिस्से ॥१६२॥ १।३।३।१।२।१ एदे मिलिया ११ । ११३३११ एकीकृताः१ प्रत्ययाः । एतेषां भङ्गाः ६॥२०॥४।३।२।१०। परस्परगणिता: २८८००॥१६२॥ अथवा मिश्रगुणस्थानमें इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक; ये ग्यारह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१६२॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+३+३+१+२+१=११ । इंदिय दोण्णि य काया कोहाई तिणि एयवेदो य । हस्साइदुय एय भयदुय एयच एयजोगो य ॥१६॥ १।२।३।१।२।१।१ एदे मिलिया ११ । १२।३।१२।१।१ एकीकृताः ११ प्रत्ययाः एतेषां । भङ्गाः ६।१५।४।३।१२।१०। परस्परेण गुणिताः ४३२०० ॥१६॥ अथवा इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक, और योग एक; ये ग्यारह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१६३॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-२+२+३+१+२+१+१=११ । +ब इक्कारस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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