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पञ्चसंग्रह
अथवा इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक; ये तेरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१४८॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+३+४+१+२+१+१=१३ ।
इंदिय दोणि य काया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयजुयलं एयजोगो य ॥१४६।।
११२।४।१।२।११ एदे मिलिया १३ । १।२।४।१।२।२११ एकीकृताः प्रत्ययाः १३ । एतेषां भङ्गाः ६।१५।४।३।२। वै० मि० ६।१५।४।२।२। एते परस्परेण गुणिता: २५६२० । १४४० ॥१४६॥
अथवा इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक; ये तेरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१४।।
इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+२+४+१+२+२+१ = १३ । एदेसि च भंगा-६।१५।४।३।२।१२ एए अपणोण्णगुणिदा= २५६२०
६।१५।४।२।२।१ एए अण्णोण्णगुणिदा- १४४० ६।२०।४।३।२।२।१२ एए अण्णोण्णगुणिदा= ६६१२० ६।२०।४।२२।२।१ एए अण्णोष्णगुणिदा- ३८४० ६।१५।४।३।२।१२ एए अग्णोण्णगुणिदा = २५९२० ६।१५।४२२।। एए अण्णोण्णगुणिदा= १४४०
एए सब्वे मिलिया = १२७६८० सर्वे मिलिताः १२७६८० ।
तेरह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी इन तीनों प्रकारोंके उक्त दोनों विवक्षाओंसे भंग इस प्रकार उत्पन्न होते हैंप्रथम प्रकार- ६६।१५।४।३।२।१२ इनका परस्पर गुणा करनेपर २५६२० भङ्ग होते हैं।
(६।१५।४।२।२।२ इनका परस्पर गुणा करनेपर १४४० भङ्ग होते हैं। दितीय प्रकार- ६/२०।४।३।२।२।१२इनका परस्पर गुणा करनेपर ६४१२० भङ्ग होते हैं।
(६।२०।४।२।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करनेपर ३८४० भङ्ग होते है। तृतीय प्रकार
(६।१५।४।३।२।१२ इनका परस्पर गुणा करनेपर २५६२० भङ्ग
(६।१५।४।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करनेपर १४४० भङ्ग होते हैं। इस प्रकार सासादन गुणस्थानमें तेरह बन्ध प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका जोड़ १२७६८० होता है।
सासादनसम्यग्दृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले चौदह बन्ध- का० अन० भ० प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंको निकालनेके लिए बीजभूत कृटकी रचना इस प्रकार है--
इंदिय पंच य काया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइजुयलमेयं जोगो चउदस हवंति ते हेऊ ॥१५॥
११५।४।१।२।१ एदे मिलिया १४ ।
११५।४।१।२।१। एकीकृताः १४ प्रत्ययाः । एतेषां भङ्गाः ६।६।४।३।२।१२। पुनः वै० मि. ६।६।। १२।१ एते परस्परेण गुणिता: १०३६८ । ५७६ ॥१५०॥
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