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________________ पञ्चसंग्रह ___ एदेसि च भंगा- ६।१५।४।३।२।१२ एदे अण्णोण्णगुणिदा = २५९२० ६।१५।४।२।२१ एए अण्णोण्णगुणिदा= १४४० ६।६।४१३१२।२।१२ एदे अण्णोण्णगुणिदा = २०७३६ ६।६।४।२।२।।१ एए अण्णोण्णगुणिदा= ११५२ एए सव्वे वि मेलिए -४६२४ ग्यारह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी उपर्युक्त दोनों प्रकारोंके भङ्ग ऊपर विशेषार्थमें बतलाई गई दोनों विवक्षाओंकी अपेक्षा इस प्रकार उत्पन्न होते हैंप्रथम प्रकार-९६।१।४।३।२।१२ इनका परस्सर गुणा करनेपर २५६२० भङ्ग होते हैं। २६।१५।४।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करनेपर १४४० भङ्ग होते हैं। द्वितीय प्रकार- ६६।६।४।३।२।२।१२ इनका परस्पर गुणा करनेपर २०७३६ भङ्ग होते हैं। १६।६।४।२।२।२।१ इनका परस्पर गुगा करनेपर ११५२ भङ्ग होते हैं। इस प्रकार सासादन गुणस्थानमें ग्यारह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका जोड़ ४६२४८ होता है। सासादन सम्यग्दृष्टिसे आगे बतलाये जानेवाले बारह का० अन० भ० बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भंगोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी रचना इस प्रकार है इंदिय तिणि य काया कोहाइचउक एयवेदो य । हस्साइजुयलमेयं जोगो वारस हवंति ते हेऊ ॥१४४॥ १।३।४। २।१ एदे मिलिया १२ । १।३।४।१।२।। एकीकृताः १२ प्रत्ययाः । एतेषां भंगाः ६।२०१४।३।२।१२ । पुनः वैक्रियिकमिश्रापेक्षया ६।२०।४।२।२।१ । एते परस्परेश गुणिताः ३४५६० । १६२० ॥१४४॥ अथवा इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक; इस प्रकार बारह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१४४॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है--१+३+४+१+२+१=१२ । इंदिय दोणि य काया कोहाइचउक्क एयवेदो य । - हस्साइदुयं एयं भयदुय एयं च जोगो य ॥१४॥ १।२।११।२।१।१ एदे मिलिया १२ । १।२।४।३।२।११ एकीकृताः १२ । एतेषां भंगाः ६।१५।४।३।२।२।१२। पुनः वै० ६।१५।४।२। २।२।१ गुणिताः ५१८४०२८८० ॥१४५॥ अथवा इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक, ये बारह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१४५॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+२+४+१+२+१+१=१२ । इंदियमेओ काओ कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एवं भयजुयलं एयजोगो य ॥१४६॥ १।१।४।१२।२।१ एदे मिलिया १२ । १1१।४।१२।२।१ एकीकृताः १२ । एतेषां भंगाः ६।६।४।३।२।१२। ६।६।४।२।२।१ । स्त्री-पुंवेदौ २१२ । वै. मि. । परस्परेण गुणिताः १०३६८ । ५७६ ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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