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________________ शतक १३३ एदेसिं च भंगा- ६।६।४।३।२।१२ । एदे अण्णोण्णगुणिदा= १०३६८ ६।६।१२।२।१ । एदे अण्णोण्णगुणिदा= ५७६ एदे मेलिए दश बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्ग इस प्रकार होंगेप्रथम प्रकार-६६।४।३।२।१२ इनका परस्पर गुणा करनेपर १०३६८ भङ्ग होते हैं। द्वितीय प्रकार-६।६।४।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करनेपर ५७६ भङ्ग होते हैं । सासादनगुणस्थानमें दशबन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी उपर्युक्त सर्व भङ्गोंका जोड़ १०६४४ होता है । विशेषार्थ-सासादन गुणस्थानवाला जीव नरकगतिको नहीं जाता है, इसलिए इस गुणस्थानवालेके यदि वैक्रियिकमिश्रकाययोग होगा, तो देवगतिकी अपेक्षासे होगा और वहाँ स्त्रीवेद तथा पुरुषवेद ये दो ही वेद होते हैं, नपुंसक वेद नहीं होता। अतएव बारह योगोंके साथ तीनों वेदोंको जोड़कर भङ्गोंकी रचना होगी। तदनुसार ६४६४४४३४२४१२= १०३६८ भङ्ग होते हैं। किन्तु वैक्रियिकमिश्रकाययोगके साथ नपुंसकवेदको छोड़कर शेष दो वेदोंकी अपेक्षा भङ्गोंकी रचना होगी। तदनुसार ६४६x४४२४२४१ =५७६ भङ्ग होते हैं । इस प्रकार सासादन गुणस्थानमें दशबन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी इन दोनों प्रकारोंसे उत्पन्न भङ्गोंका जोड़ १०६४४ हो जाता है। सासादन सम्यग्दृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले ग्यारह का० अन० भ० बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी २ १ ० रचना इस प्रकार है इंदिय दोण्णि य काया कोहाइचउक एयवेदो य । हस्साइजुयलमेयं जोगो एकारसा जादे ॥१४२॥ १।२।४।१।२।३ । एदे मिलिया ११ । १२।४।१।२।१ एकीकृताः ११ । एतेषां भंगाः ६।१५।४।३।२।१२॥ ६।१५।४।२।२।१ । परस्परेण गुणिताः २५६२०।१४४० ॥१४२॥ अथवा इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक; इस प्रकार ग्यारह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१४२॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+२+४+१+२+१=११ । इंदियमेओ काओ कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयदुय एयं च जोगो य ॥१४३।। ११।४।१।२।। एदे मिलिया ११ । ११।४।२।१।१ एकीकृताः ११। एतेषां भंगाः ६।६।४।३।२।२।१२। वैक्रियिकमाश्रित्य ६।६।४।२।२।२।१ । एते भन्योन्यगुणिताः २०७३६ । ११५२ । एते सर्वे मीलिताः ४६२४८ विकल्पाः मध्यमैकादशानां भवन्ति ॥१४३॥ अथवा इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमें से एक और योग एक; इस प्रकार ग्यारह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१४३।। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+४+१+२+१+१=११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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