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________________ १३० पञ्चसंग्रह अथ सप्तदशमध्यमप्रत्ययानां भेदे षट्-पट्-पञ्चकायविराधनादिप्रत्ययान् गाथात्रयेणाऽऽह - [ 'मिच्छि दिय छक्काया' इत्यादि] १|१|६|४|१|२|११ एकीकृताः १७ प्रत्ययाः स्युः । एतेषां भेदाः ५।६।१।४।३।२।२ एते परस्परांकेन गुणिताः १८७२० उत्तरोत्तर प्रत्यय विकल्पाः ॥१३६॥ अथवा मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक; इस प्रकार सत्तरह बन्धप्रत्यय होते हैं ॥ १३६ ॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है -? +१+६+४+१+ २ + १ + १ = १७ । मिच्छिंदि छकाया कोहाई तिण्णि एयवेदो य । हस्साइजुयल मेयं भयजुयलं सत्तरस जोगो ॥१३७॥ |१|१|६|३|१|२|२| १ एदे मिलिया १७ । १।१।६।३।१।२।२।१ एकीकृताः १७ । एतेषां भंगा ५|६|१|४|३|२|१|१० । एते परस्परेण हताः ७२०० विकल्पाः स्युः ॥१३७॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक; इस प्रकार सत्तरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१३७॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है - १ + १ +६+३+१+२+२+१ = १७ । मिच्छक्ख पंचकाया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयजुयलं सत्तरस जोगो ॥१३८॥ १|१|५|४|१।२।२।१ एदे मिलिया ३७ । |१|१|५|४|१।२।२।१ एकीकृताः १७ प्रत्ययाः । एतेषां भंगाः ५।६।६।४।३।२।१।१३ । एते अन्योन्यगुणिताः ५६१६० ॥ १३८ ॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय पाँच, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक; इस प्रकार सत्तरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।। १३८ || इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है -१ + १+५+४+१+२+२+१=१७ । एदेसि च भंगा ५।६।१।४।३।२।२।१३ एदे अण्णोष्णगुणिश = १८७२० = ७२०० ५|६|१|४|३।२।१० एदे अण्णोष्णगुणिदा एदे अण्णोष्णगुणिदा = ५६१६० ५६|६|४।३।२।१३ एए सव्वे मिलिय । = ८२०८० एते त्रयो राशयो मीलिताः १८७२० + ७२०० + ५६१६० = ८२०८० । एते सप्तदश-प्रत्ययानां विकल्पा भवन्ति । इन उपर्युक्त सत्तरह बन्ध-प्रत्ययों के तीनों प्रकारोंके भङ्ग इस प्रकार होते हैं प्रथम प्रकार—५|६|१| ४ | ३ |२/२/१३ इनका परस्पर गुणा करनेपर १८७२० भङ्ग होते हैं । द्वितीय प्रकार—५|६| १ | ४ | ३ |२| १० इनका परस्पर गुणा करनेपर ७२०० भङ्ग होते हैं । तृतीय प्रकार -५|६|६| ४ | ३ |२| १३ इनका परस्पर गुणा करनेपर ५६१६० भङ्ग होते हैं । उपर्युक्त सर्व बन्ध-प्रत्ययों का जोड़ = ८२०८० Jain Education International यह सत्तरह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गों का प्रमाण है । मिथ्यादृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले अट्ठारह बन्ध-प्रत्ययसम्बन्धी भंगोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी रचना इस प्रकार है For Private & Personal Use Only का० अन० ६ 9 भ० २ www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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